Monday, 6 April 2015

पंचमुखी शिव

हरिहर रूप


एक बार सभी देवता मिलकर संपूर्ण जगत के अशांत होने का कारण जानने के लिए विष्णुजी के पास गए। भगवान विष्णु ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर तो भोलेनाथ ही दे सकते हैं। अब सभी देवता विष्णुजी को लेकर शिवजी की खोजने मंदर पर्वत गए। वहाँ शंकरजी के होते हुए भी देवताओं को उनके दर्शन नहीं हो रहे थे।

पार्वतीजी का गर्भ नष्ट करने पर देवताओं को महापाप लगा था और इस कारण ही ऐसा हो रहा था। तब विष्णुजी ने कहा कि सारे देवता शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तत्पकृच्छ्र व्रत करें। इसकी विधि भी विष्णुजी ने बताई। सारे देवताओं ने ऐसा ही किया। फलस्वरूप सारे देवता पापमुक्त हो गए। पुनः देवताओं को शंकरजी के दर्शन करने की इच्छा जागी। देवताओं की इच्छा जान प्रभु विष्णु ने उन्हें अपने हृदयकमल में विश्राम करने वाले भगवान शंकर
के लिंग के दर्शन करा दिए।

अब सभी देवता यह विचार करने लगे कि सत्वगुणी विष्णु और तमोगुणी शंकर के मध्य यह एकता किस प्रकार हुई। देवताओं का विचार जान विष्णुजी ने उन्हें अपने हरिहरात्मक रूप का दर्शन कराया। देवताओं ने एक ही शरीर में भगवान विष्णु और भोलेनाथ शंकर अर्थात हरि और हर का एकसाथ दर्शन कर उनकी स्तुति की।
 
 
 
पंचमुखी शिव

मुक्तापीतपयोदमौक्तिकजपावर्णैर् मुखैः पञ्चभि- स्त्र्यक्षैरंजितमीशमिंदुमुकुटं पूर्णेन्दुकोटिप्रभम्‌ ।
शूलं टंककृपाणवज्रदहनान्नागेन्द्रघंटांकुशान्‌ पाशं भीतिहरं दधानममिताकल्पोज्ज्वलं चिन्तयेत्‌ ॥

'जिन भगवान शंकर के ऊपर की ओर गजमुक्ता के समान किंचित श्वेत-पीत वर्ण, पूर्व की ओर सुवर्ण के समान पीतवर्ण, दक्षिण की ओर सजल मेघ के समान सघन नीलवर्ण, पश्चिम की ओर स्फटिक के समान शुभ्र उज्ज्वल वर्ण तथा उत्तर की ओर जपापुष्प या प्रवाल के समान रक्तवर्ण के पाँच मुख हैं।

जिनके शरीर की प्रभा करोड़ों पूर्ण चंद्रमाओं के समान है और जिनके दस हाथों में क्रमशः त्रिशूल, टंक (छेनी), तलवार, वज्र, अग्नि, नागराज, घंटा, अंकुश, पाश तथा अभयमुद्रा हैं। ऐसे भव्य, उज्ज्वल भगवान शिव का मैं ध्यान करता हूँ।'
 

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