Tuesday, 7 April 2015

शिवलिंग पर अभिषेक या धारा

              शिवलिं पर अभिषेक या धारा

 

भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समय सारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक' अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथा शिवपूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ से शिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली रही है इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।
शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक ÷धारा' कहलाता है जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है
पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन कारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेक करना चाहिये
हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह हैः-
1 ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः
ऊं नमः शंभवाय मयोभवाय नमः शंकराय, मयस्कराय नमः शिवाय शिवतराय च।
इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जल चढाना सहस्रधारा कहलाता है जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी कर सकते हैं पंचाक्षरी मंत्र का तात्पर्य है ÷ ऊं नमः शिवाय ' मंत्र
विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है तंत्र में सकाम अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथ पूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है इनमें से कुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-
सहस्रधाराः-
जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है
घी
की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है
दूध
की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए
दूध
में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है
गंगाजल
की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है
सरसों
के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है
सुगंधित
द्रव्यों यथा इत्र
, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है
इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं, जिनमें से कुछ के विषय में निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-
सहस्राभिषेक
एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है
एक
हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है
एक
हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढती है
एक
हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है
एक
हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति विष्णुकृपा प्राप्त होती है
एक
हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है
एक
हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है
लक्षाभिषेक
एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है
एक
लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक
लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक
लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक
लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है
एक
लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है
एक
लाख तुलसीदल चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक
लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है
बेलपत्र
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने का भी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हे एक साथ ही चढाया जाता है।अच्छे पत्तों के अभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं।इन्हे उलटकर अर्थात चिकने भाग को लिंग की ओर रखकर चढाया जाता है।इसके लिये जिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है,
त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम त्रिधायुधम।
त्रिजन्म
पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥
उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र को समर्पित करना चाहिए
शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-
पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
माता
पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये अन्यथा पूजन अधूरा रह जायेगा।
रुद्राक्ष
की माला हो तो धारण करें।
भस्म
से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
शिवलिंग
पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता
, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
शिवमंदिर
की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
केवडा
तथा चम्पा के फूल चढायें।
पूजन
काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।

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