Sunday, 5 April 2015

श्रीमहाकाली साधना के प्रयोग से लाभ

                  श्रीमहाकाली साधना के प्रयोग से लाभ


महाकाली साधना करने वाले जातक को निम्न लाभ स्वत: प्राप्त होते हैं-
(1)    जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं।
(2)    श्री महाकाली स्तोत्र एवं मंत्र को धारण करने वाले धारक की वाणी में विशिष्ट ओजस्व व्याप्त हो जाने के कारणवश गद्य-पद्यादि पर उसका पूर्व आधिपत्य हो जाता है।
(3)    महाकाली साधक के व्यक्तित्व में विशिष्ट तेजस्विता व्याप्त होने के कारण उसके प्रतिद्वंद्वी उसे देखते ही पराजित हो जाते हैं।
(4)    काली साधना से सहज ही सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।
(5)    काली का स्नेह अपने साधकों पर सदैव ही अपार रहता है। तथा काली देवी कल्याणमयी भी है।
(6)    जो जातक इस साधना को संपूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पूर्वक करता है वह निश्चित ही चारों वर्गों में स्वामित्व की प्राप्ति करता है व माँ का सामीप्य भी प्राप्त करता है।
(7)    साधक को माँ काली असीम आशीष के अतिरिक्त, श्री सुख-सम्पन्नता, वैभव व श्रेष्ठता का भी वरदान प्रदान करती है। साधक का घर कुबेरसंज्ञत अक्षय भंडार बन जाता है।
(8)    काली का उपासक समस्त रोगादि विकारों से अल्पायु आदि से मुक्त हो कर स्वस्थ दीर्घायु जीवन व्यतीत करता है।
(9)    काली अपने उपासक को चारों दुर्लभ पुरुषार्थ, महापाप को नष्ट करने की शक्ति, सनातन धर्मी व समस्त भोग प्रदान करती है।

समस्त सिद्धियों की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम गुरु द्वारा दीक्षा अवश्य प्राप्त करें, चूंकि अनंतकाल से गुरु ही सही दिशा दिखाता है एवं शास्त्रों में भी गुरु का एक विशेष स्थान है।

श्रीमहाकाली पाठ-पूजन विधि


सबसे पहले गणपति का ध्यान करते हुए समस्त देवी-देवताओं को नमस्कार करें।
1.    श्री मन्महागणाधिपतये नम:।।
अर्थात्-बुद्धि के देवता श्री गणेश को हमारा नमस्कार है।
2.    लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।।
अर्थात्-सृष्टि के अस्तित्व व अनुभवकर्ता श्री लक्ष्मी व नारायण को हमारा शत-शत नमस्कार है।
3.    उमामहेश्वरा्भ्यां नम:।।
अर्थात्-श्री महादेव व माँ पार्वती को हमारा नमस्कार है।
4.    वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:।।
अर्थात्-वाणी और उत्पत्ति के कारक माँ सरस्वती व परम ब्रह्म तुम्हें सादर नमस्कार है।
5.    शचीपुरन्दराभ्यां नम:।।
अर्थात्-देवराज इन्द्र व उनकी भार्या शची देवी को हमारा नमस्कार है।
6.    मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नम:।।
अर्थात्-माता और पिता को हमारा सादर नमस्कार है।
7.    इष्टदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्-मेरे इष्ट देवता को मेरा सादर नमस्कार है।
8.    कुलदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्-हमारे कुल (खानदान) के देवता तुम्हें नमस्कार है।
9.    ग्रामदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्-जिस गहर (ग्राम) से मेरा संबंध है उस स्थान के देवता तुम्हें नमस्कार है।
10.    वास्तुदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात हे वास्तु पुरुष देवता तुम्हें नस्कार है।
11.    स्थानदेवताभ्यो नम:।
   अर्थात्-इस स्थान के देवता को सादर नमस्कार है।
12.    सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।
    अर्थात्-समस्त देवताओं को नेरा नमस्कार है।
13.    सर्वेभ्यो ब्राह्यणेभ्यो नमः।।
अर्थात् उन सभी को जिन्हें ब्रह्म का ज्ञान है, मेरा सादर नमस्कार है।

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