Tuesday 31 March 2015

मंगल ग्रह के उपाय और टोटके

मंगल ग्रह के उपाय और टोटके (Lal Kitab Remedies and Totke in Hindi)







अगर कुंडली में मंगल की स्थिति अच्छी ना हो जातक को एक सुयोग्य पंडित द्वारा इसका उपाय कराना चाहिए। कई जानकार मानते हैं कि मंगल ग्रह (Lal Kitab remedies for marriage) के उपाय करने से शादी में आ रही परेशानी को दूर हो जाती है। मंगल ग्रह के कुछ आसान उपाय निम्न हैं के लिए भी यह उपाय कारगर होते हैं लाल किताब के आसान उपायों या टोटकों का इस्तेमाल करना चाहिए, जो निम्न हैं:
* लाल किताब कुंडली (Lal Kitab Kundali in Hindi) में अगर मंगल प्रथम भाव में नीचा यानि उचित फल देने वाला ना हो तो ऐसे जातकों को ससुराल से कुत्ता नहीं लेना चाहिए। शरीर पर सोना धारण करना चाहिए।
* दूसरे भाव में मंगल ग्रह के उत्तम फल पाने के लिए भाइयों का सदा आदर करना चाहिए।
* तीसरे भाव में मंगल ग्रह की पीड़ा शांत करने के लिए अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए और हमेशा सबसे प्यार से बात करना चाहिए।
* अगर चौथे भाव में बैठे मंगल के कारण आपको परेशानी हो रही है तो वटवृक्ष की जड़ में मीठा दूध चढ़ाएं। अपने पास सदैव चांदी रखें, अंधजनों या जिनकी एक आंख हो उनसे दूरी बनाएं रखें तथा चिड़ियों को दाना डालें।
* पंचम भाव में मंगल की पीड़ा शांत करने के लिए जातक को रात को सर के पास पानी रखकर सोएं और इस जल को सुबह पेड़ में डाल दें, पिता के नाम पर दूध का दान करें तथा पराई स्त्री से संबंध बनाने से बचें।
* छठे भाव में मंगल ग्रह के शुभ फल पाने के लिए जल, चांदी और तेल का दान दें, शनि को शांत करने के उपाय करें तथा पुत्र को कभी सोना न पहनाएं।
* लाल किताब के अनुसार सातवें भाव में अगर मंगल ग्रह से आपको हानि हो रही हो तो घर में ठोस चांदी रखें, तोता-मैना या कोई अन्य पक्षी ना पालें तथा जब भी बहन घर आए उसे मिठाई दें।
* आठवें भाव में मंगल ग्रह के अशुभ परिणामों को कम करने के लिए विधवा स्त्रियों की सेवा करें और गले में चांदी की चेन पहनें, तंदुरी मीठी रोटी कुत्ते को 40 या 45 दिन तक खिलाएं।
* नौवें भाव में मंगल ग्रह की पीड़ा शांत करने के लिए या इनके दुष्परिणामों से बचने के लिए भाभी की सेवा करें और बड़े भाई के साथ रहें तथा दूध, गुड़ और चावल का मंदिर में दान करें।
* दसवें भाव में मंगल ग्रह की पीड़ा शांत करने के लिए जमीन जायदाद और सोना-चांदी कभी ना बेचे, हिरण पाले, संतानहीन लोगों की मदद करें तथा ध्यान दें कि दूध कभी उबलकर ना गिरे।
* अगर लाल किताब कुंडली में मंगल 11वें भाव में है और जातक को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो पैतृक संपत्ति कभी ना बेचे, पहली संतान के जन्म पर कुत्ता पालें तथा घर में शहद रखें।
* लाल किताब ज्योतिषी और जानकार बारहवें भाव में बैठे मंगल ग्रह की पीड़ा या अशुभ फलों को कम करने के लिए अपने दिन की शुरूआत शहद के साथ करें, मीठा खाएं और दूसरों को भी खिलाएं तथा अतिथि सत्कार में पानी की जगह शरबत या दूध पिलाएं।
नोट:
1. किसी भी उपाय को करने से पहले अपनी लाल किताब द्वारा निर्मित कुंडली का विश्लेषण अवश्य कराएं।
2.उपरोक्त उपाय मात्र संकेतक हैं इन्हें बिना जानकारी के इस्तेमाल करना विपरीत फल देने वाला भी हो सकता है।

नहीं रहेगा धन का अभाव, करें यह काम

          नहीं रहेगा धन का अभाव, करें यह काम




अगर आप आर्थिक समस्याओं से परेशान रहते हैं और इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए कई उपाय भी आजमा चुके हैं लेकिन कोई लाभ नहीं मिला है तो इसका एक कारण आपकी कुण्डली में चन्द्रमा का कमजोर होना भी एक कारण हो सकता है। इस स्थिति में चन्द्रमा को मजबूत बनाने का काम करना चाहिए।

ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा को ग्रहों की रानी कहा गया है। चन्द्रमा एक शुभ ग्रह है और यह जल एवं माता का कारक होता है। चन्द्रमा आपके मन को भी प्रभावित करता है। चन्द्रमा को मजबूत बनाने के लिए लाल किताब में कुछ आसान से टोटके बताए गए हैं जिसे आप आसानी से आजमा सकते हैं।


जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में चन्द्रमा आठवें घर में बैठा हो उसे जल क्षेत्र से भय रहता है। इन्हें नदी, तालाब, सरोवर एवं समुद्र के आस-पास किसी भी तरह की असावधानी से बचना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार ऐसे व्यक्तियों को माता के हाथों से चावल या चांदी का एक टुकड़ा लेकर संभालकर रखना चाहिए। इससे धन की परेशानी नहीं रहती है। मानसिक शांति एवं स्थिरता के लिए सोने की अंगूठी में मोती धारण करना चाहिए।


श्मशान का नाम सुनते ही मन में एक भय उभरने लगता है। लेकिन लाल किताब में एक ऐसा उपाय है जो श्मशान भूमि में जाकर करना होता है। हलांकि यह उपाय ऐसा है जिसके लिए आपको किसी तंत्र मंत्र की जरूरत नहीं है। बस करना यह है कि आप एक छोटा सा मिट्टी का बर्तन लेकर श्मशान जाइये।

इस बर्तन में श्मशान में स्थित जल के स्रोत जैसे नल, हैंडपंप आदि से पानी भरकर अपने घर ले आएं। इसमें चांदी का एक चौरस टुकड़ा रखकर घर के पूर्व दिशा में इस प्रकार स्थापित कर दें ताकि कोई इसके साथ छेड़-छाड़ नहीं करे।

इस उपाय से आर्थिक मामलों में आने वाली बाधाएं एवं कार्य में बार-बार आने वाली रुकावटें दूर होती हैं। चन्द्रमा के अष्टम भाव में होने पर यह उपाय बहुत ही लाभकारी होता है।
 

Sunday 29 March 2015

आपका मूलांक

                        आपका मूलांक



मूलांक 1- 1 मूलांक वालों का स्वामी सूर्य है वहीं वर्ष का अंक 5 है। इनमें आपसी मित्रता है अत: यह वर्ष आपके लिए अत्यंत सुखद रहेगा। अधूरे कार्यों में सफलता मिलेगी। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह वर्ष उत्तम रहेगा। पारिवारिक मामलों में महत्वपूर्ण कार्य होंगे। अविवाहितों के लिए सुखद स्थिति बन रही है। विवाह के योग बनेंगे। नौकरीपेशा के लिए समय उत्तम हैं। पदोन्नति के योग हैं। बेरोजगारों के लिए भी खुशखबर है इस वर्ष आपकी मनोकामना पूरी होगी।


मूलांक 2- मूलांक 2 का स्वामी चंद्र है व वर्ष का स्वामी बुध है और इन दोनों में शत्रुता है। यह वर्ष काफी समझदारी से चलने का रहेगा। लेखन से संबंधित मामलों में सावधानी रखना होगी। बगैर देखे किसी कागजात पर हस्ताक्षर ना करें। किसी नवीन कार्य योजनाओं की शुरुआत करने से पहले बड़ों की सलाह लें। व्यापार-व्यवसाय की स्थिति ठीक-ठीक रहेगी। स्वास्थ्य की दृष्टि से संभल कर चलने का वक्त होगा। पारिवारिक विवाद आपसी मेलजोल से ही सुलझाएं। किसी की दखलअंदाजी ठीक नहीं रहेगी।



मूलांक 3 - मूलांक 3 का स्वामी गुरु है व वर्षांक 5 का स्वामी बुध है। गुरु-बुध आपस में सम है। यह वर्ष आपके लिए अत्यंत सुखद है। किसी विशेष परीक्षा में सफलता मिल सकती है। नौकरीपेशा के लिए प्रतिभा के बल पर उत्तम सफलता का है। नवीन व्यापार की योजना भी बन सकती है। दांपत्य जीवन में सुखद स्थिति रहेगी। घर या परिवार में शुभ कार्य होंगे। मित्र वर्ग का सहयोग सुखद रहेगा। शत्रु वर्ग प्रभावहीन होंगे। महत्वपूर्ण कार्य से यात्रा के योग भी है।


इस श्रेणी में वो लोग आते हैं जिनके जन्मदिन महीने के 4, 13, 22 तारीख को होते हैं। जिन्हें मूंलाक निकालना नहीं आता है वो अपने जन्म तिथि का योग फल निकाल लें जैसे कि यदि किसी व्यक्ति का जन्मदिन 4 तारीख को है तो उसका मूलांक 4+0=4 होगा। यदि किसी लड़की या लड़के का जन्मदिन मूलांक 4 के अंदर आता है तो आपको बता दें कि ऐसे लोग बहुत ही मस्त-मौला होते हैं। इनका मानना होता है कि जिंदगी केवल एक बार मिलती है, इसलिए इसे भरपूर जीना चाहिए क्या पता कल हो ना हो। ये बेहद ही मजेदार और हंसी-मजाक वाले होते हैं। इन्हें हमेशा लोगों के बीच में खुशी बांटते हुए देखा जा सकता है। लेकिन इस नाम के लोग अपनी हंसी ही बांटते हैं लेकिन अपने गम किसी खास से ही शेयर करते हैं। ये मस्त मौला जरूर होते हैं लेकिन अपने फैसले बहुत सोच समझ कर लेते हैं। इन्हें सुंदरता प्रभावित करती है, इसलिए इनके दोस्त अक्सर काफी सुंदर होते हैं। ये प्रेम विवाह पर यकीन रखते हैं, सेक्स लाईफ के ये बेहद पसंद करते हैं। अपने आस-पास बेहद ही अच्छा माहोल बनाने वाले ये लोग काफी तरक्की करते हैं। पैसा इनके पास आता जरूर है लेकिन रूकता नहीं है लेकिन ये इस बात की चिंता नहीं करते हैं। जिंदगी में ये जो चाहते हैं उसे पा ही लेते हैं। कुल मिला कर ऐसे लोगों को लोग काफी पसंद करते हैं। इस नंबर के लोगों से हमेशा दोस्ती करनी चाहिए क्योंकि ऐसे लोग कभी भी आपका मनोबल गिरने नहीं देते हैं।

शरीर के विभिन्न अंगों पर पाए जाने वाले तिलों का सामान्य फल इस प्रकार है।

शरीर के विभिन्न अंगों पर पाए जाने वाले तिलों का सामान्य फल इस प्रकार है।


1. ललाट पर तिल - ललाट के मध्य भाग में तिल निर्मल प्रेम की निशानी है। ललाट के दाहिने तरफ का तिल किसी विषय विशेष में निपुणता, किंतु बायीं तरफ का तिल फिजूलखर्ची का प्रतीक होता है। ललाट या माथे के तिल के संबंध में एक मत यह भी है कि दायीं ओर का तिल धन वृद्धिकारक और बायीं तरफ का तिल घोर निराशापूर्ण जीवन का सूचक होता है।

2. भौंहों पर तिल - यदि दोनों भौहों पर तिल हो तो जातक अकसर यात्रा करता रहता है। दाहिनी पर तिल सुखमय और बायीं पर तिल दुखमय दांपत्य जीवन का संकेत देता है।

3. आंख की पुतली पर तिल - दायीं पुतली पर तिल हो तो व्यक्ति के विचार उच्च होते हैं। बायीं पुतली पर तिल वालों के विचार कुत्सित होते हैं। पुतली पर तिल वाले लोग सामान्यत: भावुक होते हैं।

4. पलकों पर तिल - आंख की पलकों पर तिल हो तो जातक संवेदनशील होता है। दायीं पलक पर तिल वाले बायीं वालों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते हैं।

5. आंख पर तिल - दायीं आंख पर तिल स्त्री से मेल होने का एवं बायीं आंख पर तिल स्त्री से अनबन होने का आभास देता है।

6. कान पर तिल - कान पर तिल व्यक्ति के अल्पायु होने का संकेत देता है।

7. नाक पर तिल - नाक पर तिल हो तो व्यक्ति प्रतिभासंपन्न और सुखी होता है। महिलाओं की नाक पर तिल उनके सौभाग्यशाली होने का सूचक है।

8. होंठ पर तिल - होंठ पर तिल वाले व्यक्ति बहुत प्रेमी हृदय होते हैं। यदि तिल होंठ के नीचे हो तो गरीबी छाई रहती है।

9. मुंह पर तिल - मुखमंडल के आसपास का तिल स्त्री तथा पुरुष दोनों के सुखी संपन्न एवं सज्जन होने के सूचक होते हैं। मुंह पर तिल व्यक्ति को भाग्य का धनी बनाता है। उसका जीवनसाथी सज्जन होता है।

10 गाल पर तिल - गाल पर लाल तिल शुभ फल देता है। बाएं गाल पर कृष्ण वर्ण तिल व्यक्ति को निर्धन, किंतु दाएं गाल पर धनी बनाता है।

11. जबड़े पर तिल - जबड़े पर तिल हो तो स्वास्थ्य की अनुकूलता और प्रतिकूलता निरंतर बनी रहती है।
ठोड़ी पर तिल - जिस स्त्री की ठोड़ी पर तिल होता है, उसमें मिलनसारिता की कमी होती है।

12. कंधों पर तिल - दाएं कंधे पर तिल का होना दृढ़ता तथा बाएं कंधे पर तिल का होना तुनकमिजाजी का सूचक होता है।

13. दाहिनी भुजा पर तिल - ऐसे तिल वाला जातक प्रतिष्ठित व बुद्धिमान होता है। लोग उसका आदर करते हैं।

14. बायीं भुजा पर तिल - बायीं भुजा पर तिल हो तो व्यक्ति झगड़ालू होता है। उसका सर्वत्र निरादर होता है। उसकी बुद्धि कुत्सित होती है।

15. कोहनी पर तिल - कोहनी पर तिल का पाया जाना विद्वता का सूचक है।

16. हाथों पर तिल - जिसके हाथों पर तिल होते हैं वह चालाक होता है। गुरु क्षेत्र में तिल हो तो सन्मार्गी होता है। दायीं हथेली पर तिल हो तो बलवान और दायीं हथेली के पृष्ठ भाग में हो तो धनवान होता है। बायीं हथेली पर तिल हो तो जातक खर्चीला तथा बायीं हथेली के पृष्ठ भाग पर तिल हो तो कंजूस होता है।

17. अंगूठे पर तिल - अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कार्यकुशल, व्यवहार कुशल तथा न्यायप्रिय होता है।

18. तर्जनी पर तिल - जिसकी तर्जनी पर तिल हो, वह विद्यावान, गुणवान और धनवान किंतु शत्रुओं से पीड़ित होता है।

19. मध्यमा पर तिल - मध्यमा पर तिल उत्तम फलदायी होता है। व्यक्ति सुखी होता है। उसका जीवन शांतिपूर्ण होता है।

20. अनामिका पर तिल - जिसकी अनामिका पर तिल हो तो वह ज्ञानी, यशस्वी, धनी और पराक्रमी होता है।
कनिष्ठा पर तिल - कनिष्ठा पर तिल हो तो वह व्यक्ति संपत्तिवान होता है, किंतु उसका जीवन दुखमय होता है।

21. जिसकी हथेली में तिल मुठ्ठी में बंद होता है वह बहुत भाग्यशाली होता है लेकिन यह सिर्फ एक भ्रांति है। हथेली में होने वाला हर तिल शुभ नहीं होता कुछ अशुभ फल देने वाले भी होते हैं।

22. सूर्य पर्वत मतलब रिंग फिंगर के नीचे के क्षेत्र पर तिल हो तो व्यक्ति समाज में कलंकित होता है। किसी की गवाही की जमानत उल्टी अपने पर नुकसान देती है। नौकरी में पद से हटाया जाना और व्यापार में घाटा होता है। मान- सम्मान पर प्रभावित होता है और नेत्र संबंधित रोग तंग करते हैं।

23. बुध पर्वत यानी लिटिल फिंगर के नीचे के क्षेत्र पर तिल हो तो व्यक्ति को व्यापार में हानि उठानी पड़ती है। ऐसा व्यक्ति हिसाब-किताब व गणित में धोखा खाता है और दिमागी रूप से कमजोर होता है।

24. लिटिल फिंगर के नीचे वाला क्षेत्र जो हथेली के अंतिम छोर पर यानी मणिबंध से ऊपर का क्षेत्र जो चंद्र क्षेत्र कहलाता है, इस क्षेत्र पर यदि तिल हो तो ऐसे व्यक्ति के विवाह में देरी होती है। प्रेम में लगातार असफलता मिलती है। माता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है।

25. गले पर तिल - गले पर तिल वाला जातक आरामतलब होता है। गले पर सामने की ओर तिल हो तो जातक के घर मित्रों का जमावड़ा लगा रहता है। मित्र सच्चे होते हैं। गले के पृष्ठ भाग पर तिल होने पर जातक कर्मठ होता है।

26. छाती पर तिल - छाती पर दाहिनी ओर तिल का होना शुभ होता है। ऐसी स्त्री पूर्ण अनुरागिनी होती है। पुरुष भाग्यशाली होते हैं। शिथिलता छाई रहती है। छाती पर बायीं ओर तिल रहने से भार्या पक्ष की ओर से असहयोग की संभावना बनी रहती है। छाती के मध्य का तिल सुखी जीवन दर्शाता है। यदि किसी स्त्री के हृदय पर तिल हो तो वह सौभाग्यवती होती है।

27. कमर पर तिल - यदि किसी व्यक्ति की कमर पर तिल होता है तो उस व्यक्ति की जिंदगी सदा परेशानियों से घिरी रहती है।

28. पीठ पर तिल - पीठ पर तिल हो तो जातक भौतिकवादी, महत्वाकांक्षी एवं रोमांटिक हो सकता है। वह भ्रमणशील भी हो सकता है। ऐसे लोग धनोपार्जन भी खूब करते हैं और खर्च भी खुलकर करते हैं। वायु तत्व के होने के कारण ये धन संचय नहीं कर पाते।

29. पेट पर तिल - पेट पर तिल हो तो व्यक्ति चटोरा होता है। ऐसा व्यक्ति भोजन का शौकीन व मिष्ठान्न प्रेमी होता है। उसे दूसरों को खिलाने की इच्छा कम रहती है।

30. घुटनों पर तिल - दाहिने घुटने पर तिल होने से गृहस्थ जीवन सुखमय और बायें पर होने से दांपत्य जीवन दुखमय होता है।

31 पैरों पर तिल - पैरों पर तिल हो तो जीवन में भटकाव रहता है। ऐसा व्यक्ति यात्राओं का शौकीन होता है। दाएं पैर पर तिल हो तो यात्राएं सोद्देश्य और बाएं पर हो तो निरुद्देश्य होती हैं।
समुद्र विज्ञान के अनुसार जिनके पांवों में तिल का चिन्ह होता है उन्हें अपने जीवन में अधिक यात्रा करनी पड़ती है। दाएं पांव की एड़ी अथवा अंगूठे पर तिल होने का एक शुभ फल यह माना जाता है कि व्यक्ति विदेश यात्रा करेगा। लेकिन तिल अगर बायें पांव में हो तो ऐसे व्यक्ति बिना उद्देश्य जहां-तहां भटकते रहते हैं।

शनिवार व्रत की विधि

                                            शनिवार व्रत की विधि

 

 

 

शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है । इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए। शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।
शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।
शनिश्वर के भक्तों को संध्या काल में शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए। शनि देव का आशीर्वाद लेने के पश्चात आपको प्रसाद स्वरूप खिचड़ी खाना चाहिए। सूर्यपुत्र शनिदेव की प्रसन्नता हेतु इस दिन काले चींटियों को गुड़ एवं आटा देना चाहिए। इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिए। अगर आपके पास समय की उपलब्धता हो तो शनिवार के दिन 108 तुलसी के पत्तों पर श्री राम चन्द्र जी का नाम लिखकर, पत्तों को सूत्र में पिड़ोएं और माला बनाकर श्री हरि विष्णु के गले में डालें। जिन पर शनि का कोप चल रहा हो वह भी इस मालार्पण के प्रभाव से कोप से मुक्त हो सकते हैं। इस प्रकार भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक शनिवार के दिन शनिदेव का व्रत एवं पूजन करने से शनि का कोप शांत होता है और शनि की दशा के समय उनके भक्तों को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है।

शनि का प्रत्येक भाव के लिए उपाय

       शनि का प्रत्येक भाव के लिए उपाय

 

शनि देव के प्रकोप से हम सभी भयभीत रहते हैं। शनि की साढ़े साती हो या ढईया इनका नाम सुनते ही घबराहट सी महसूस होने लगती है। लाल किताब में शनि के प्रकोप से बचने के लिए आसान उपाय दिये गये हैं। इस लेख में इन्हीं उपायों के बारे में जिक्र किया जा रहा है।

आमतौर पर वैदिक ज्योतिष में जब ग्रह कमजोर या अशुभ स्थिति (Debilitated and inaspicious position of planets) मे होते  है तब उनका उपाय किया जाता है।परन्तु लाल किताब के अनुसार ग्रह चाहे शुभ स्थिति में हो या अशुभ उसका उपाय करने से जहाँ उसके फल में स्थायित्व रहता (Result intact in Lal Kitab) हें, वही दूसरी तरफ अशुभ ग्रह का उपाय करने से उसके विपरीत प्रभाव में कमी आती है।

कुण्डली में शनि जिस भाव में है उस भाव के अनुसार हमें किस प्रकार का उपाय करना चाहिए, यहां लाल किताब के सिद्धान्तों के अनुसार हम इसे जानने की कोशिश करेंगे।

    आपके लिए  लाल किताब कुंडली एवं उपचार रिपोर्ट  - Lal Kitab Remedies

आपकी कुण्डली में शनि प्रथम भाव में स्थित हों तो आपको इस प्रकार के उपाय करने चाहिए।((Remedies of Saturn in first house)
1) जमीन पर तेल गिराएं.
2) 48 वर्ष की आयु तक मकान न बनाएं.
3) रूके हुये पानी में काला सुरमा दबाएं.
4) बन्दर पालें.
5) मांगने वाले को लोहे की अगींठी, तवा, चिमटा इत्यादि दान में दें.
6) वट बृक्ष की पेड़ की जड़ में दूध डालकर उसकी गीली मिट्टी का तिलक माथे पर लगाएं.

द्वितीय भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in second house)
1) भूरे रंग की भेंस पालें.
2) साँप को दूध पिलाएं.
3) मन्दिर में उड़द काली मिर्च, काले चने व चन्दन की लकडी दान में दें.
4) प्रतिदिन मन्दिर में दर्शन करें.

तृतीय भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in third house)
1) अलग-अलग रंग के (सफेद, लाल, काला, ) तीन कुत्ते पालें.
2) मकान की दहलीज में लोहे की कील लगाएं.

चतुर्थ भाव में स्थित शनी के उपाय (Remedies of Saturn in fourth house)
1) साँप को दूध पिलाएं.
2) मछ्ली को चावल, दाना आदी डालें
3) डा़क्टरी का कार्य करें और इलाज के तौर खुश्क दवा दें.
4) रात को दूध न पिये.
5) श्रमिक वर्ग से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखें.
6) भैस पालें.
7) दवाईयों व्यापार करें.

पंचम भाव में स्थित शनी के उपाय (Remedies of Saturn in fifth house)
1) 48 वर्ष आयु से पहले मकान न वनाएं.
2) मन्दिर में बादाम चढाए़ व उनमें से आधे वाप़स लाकर घरमें रखें.
3) पुत्र के जन्म दिन पर मिठाई न बाटें.
4) कुत्ता पालें.
5) काले सुरमें को बहते जल में प्रवाहित करें.

छटे भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in sixth house)
1) भूरे व काले रंग का कुत्ता पालें.
2) सरसो का तेल मिट्टी या शीशी के बर्तन में बन्द करके तालाब के पानी के अन्दर दबाएं.
3) साँप को दूध पिलाएं.
4) रात के समय किया गया काम लाभदायक होगा.

सप्तम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in seventh house)
1) 22 वर्ष की आयु से पहले विवाह न करें.
2) देशी खाण्ड मिटटी के बर्तन में भरकर श्मशान में दवाएं.
3) पत्नी के बालों में सोना लगाएं.
4) किसी भी रिश्तेदार से साझें में कार्य न करें.
5) पत्नी की सलाह से काम करें.

अष्टम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in eighth house)
1) शराब, अण्डे, मांस से परहेज करें.
2) मकान न खरीदें.
3) भारी मशीनरी का व्यबसाय न करें.
4) लोहे की अंगीठी, तवा, चिमटा आदि दान करें.
5) भुमि पर नगें पाँव ना चलें.
6) आठ किलो साबुत उड़त चलते पानी में प्रवाहित करें.

नवम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in ninth house)
1) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.
2) चलते पानी में चावल प्रवाहित करें.
3) पिता, दादा के साथ रहें.
4) बूढे ब्राह्मण को बृहस्पति की वस्तुएँ दान करें .
5) छत पर इंधन (चूल्हा) न जलाएँ.
6) सोना, चांदी व कपडे़ का व्यबसाय लाभ देगा.

द्शम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in tenth house)
1) रात को दूध ना पिये.
2) सिर ढक कर रखें .
3) दस अन्धों को भोजन करायें.
4) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.5) मन्दिर में दर्शन हेतु जाते रहें.

एकादश भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in eleventh house)
1) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.
2) 48 वर्ष आयु के पश्चात मकान बनाऎं.
3) जमीन पर तेल गिराऎं.
4) मकान में दक्षिण दिशा की ओर दरवाजा ना रखें.
5) शुभ काम करने से पहले मिट्टी का घडा़ पानी से भरकर रखें.

द्वादश भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in twelveth house)
1) झूठ बोलने से बचे.
2) मकान की पिछली दीवार में रोशनदान ना बनाएं.
3) शराब, अण्डा, मांस से परहेज करें.
4) धर्म, कर्म करते रहें.

लाल किताब के अनुसार शनि के उपरोक्त उपाय (Remedies of Saturn in Lal Kitab) करने से तुरन्त लाभ मिलता हैं.

ध्यान रखें:
1) एक समय में केवल एक ही उपाय करें.
2) उपाय कम से कम 40 दिन या 43 दिनो तक करें.
3) उपाय में नागा ना करें यदि किसी कारणवश नागा हो तो उपाय फिर से प्रारम्भ करें.
4) उपाय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक करें.
5) उपाय खून का रिश्तेदार ( भाई, पिता, पुत्र इत्यादि) भी कर सकता है. 

आज आपके साथ कुछ ऐसा रहेगा

 वृश्चिक - आज आपके साथ कुछ ऐसा रहेगा जैसे मेहनत बहुत कम करेंगे





वृश्चिक - आज आपके साथ कुछ ऐसा रहेगा जैसे मेहनत बहुत कम करेंगे और मुनाफा आपको ज्यादा होगा। आज आपकी राशि का चंद्रमा भाग्य भाव में हैं। आज किसी के साथ आपकी बहुत खास बातचीत हो सकती है, जिसका आपके करियर के लिए बहुत गहरा अर्थ हो सकता है। आपके साथ काम करने वाला कोई व्यक्ति, जो स्वभाव से बहुत ही हंसमुख और विनोदी है, आज आपको करियर से जुड़े किसी मामले में बहुत मदद करेगा। आज मन में कुछ बेचैनी रहेगी। अपने काम में आपका मन कम ही लगेगा। कई तरह के नए-नए विचार मन में चलते रहेंगे, लेकिन जब तक आगे का रास्ता बहुत साफ न हो, आज आप किसी दिशा में कोई कदम न बढ़ाएं।
अपने मन की बातें, अपने इरादे, अपनी योजनाएं किसी को न बताएं। लंबे समय की कोई योजना आज न बनाएं। किसी बात को लेकर बहुत उतावले भी न हों, इस दौर को शांति से बीत जाने दें। अपने व्यवहार से किसी को नाराज न करें। खुश महसूस करेंगे। कार्यक्षेत्र के बड़े काम संयमपूर्वक करें। आप जिस ढंग से आप बात करेंगे, उससे दूसरे लोग आपके पक्ष में हो जाएंगे। संतान के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करें। कार्यस्थल पर आपके लिए स्थितियां अच्छी रहेगी। दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य रहेगा। उपहार मिलेगा।

लव- अपने पार्टनर के प्रति व्यावहारिक नजरिया रखें। संयम बनाएं रखें। लव पार्टनर पर हावी न हों। आज आपका पार्टनर बेहद संवेदनशील हो सकता है।

प्रोफेशन- आज वाणी पर संयम रखें। विवाद हो सकता है।

हेल्थ- पुरानी शारीरिक समस्याएं चलती रहेगी। कुछ खास परिवर्तन होने के आसार नहीं है।

करियर- निर्माण कार्यों से जुड़े लोग सफल होंगे। मेडिकल विद्यार्थियों को बहुत अच्छी सफलता मिलेगी।



मेष - आज आपकी ऊर्जा कम हो सकती हैं। आपकी राशि का चंद्रमा खुद की राशि के साथ कुंडली के चौथे भाव में है। राशि से चौथा चंद्रमा आज आपको मानसिक रूप से परेशान कर सकता हैं। मानसिक थकान होने से आपकी ऊर्जा में कमी आएगी। आपका व्यक्तित्व तो बहुत आकर्षक है, लेकिन आज आपका दिन उसके अनुसार नहीं रहेगा। आज आपका मन कुछ कमजोर हो सकता है। आज आपको विशेष तौर पर घर, जमीन या जायदाद से संबंधित कुछ अच्छे और नए अवसर मिल सकते हैं, लेकिन आज आपको कोई नया काम शुरू नहीं करना चाहिए।
आज आपको किसी स्थिति का नेतृत्व संभालना होगा। अगर आपके मन में कोई संशय है तो उसे अपने आत्मबल के दम पर दूर कर लें। जो बदलाव हो रहा है, वह आपकी अपनी उन्नति के लिए भी जरूरी है। परिवार और समाज के लोग आज आपके लिए काफी मददगार हो सकते हैं। अगर आप झुंझलाते रहे, तो माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कुछ न कुछ विवाद कर बैठेंगे। परिवार के प्रति विनम्र रहें। बातचीत में और भाषण कला में आपको सफलता मिल सकती है। आप जो कुछ कहेंगे, उसका दूसरों पर गहरा और भावनात्मक असर हो सकता है। फिर भी, जो भी बोलें, तोल-मोल कर ही बोलें। आज आप कुछ नया करने के चक्कर में न पड़ें। नया डिसिजन लेने में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। आवश्यक कार्य हेतु ऋण लेना पड़ सकता है। कार्य के प्रति गंभीर रहें।

लव- आज आपको लव प्रपोजल मिलने के योग हैं। दिल और दिमाग दोनों बराबर रखें।

प्रोफेशन- आज कारोबारी यात्रा करने के योग बन सकते हैं। बिजनेस में आपके हितैषी लोग आपके पीठ पीछे आपके हित की ही बात करेंगे।

हेल्थ- आज आलस्य और थकान महसूस हो सकती है। विचारों में खोए रहेंगे।

करियर- आज मेडिकल विद्यार्थियों को मेहनत अधिक करनी पड़ेगी।

दैनिक राशिफल

                         दैनिक राशिफल 


मेष
व्यापार में वांछित उन्नति होगी। अर्थ प्राप्ति के योग बनेंगे। विवादों से दूर रहना चाहिए। पिता से व्यापार में सहयोग मिल सकेगा।


राशि फलादेश
वृष
नए कार्यों से जुड़ने का योग बनेगा। पारिवारिक जीवन सुखद नहीं रहेगा। पूजा-पाठ में मन लगेगा। नौकरी में कार्य की प्रशंसा हो सकती है।


राशि फलादेश
मिथुन
सरकारी मसले सुलझेंगे। प्रयास अधिक करने पर भी कार्यक्षेत्र में उचित सफलता मिलने में संदेह है। कार्य में विलंब के भी योग हैं।


राशि फलादेश
कर्क
मन में उत्साहपूर्ण विचारों के कारण समय सुखद व्यतीत होगा। मकान व जमीन संबंधी कार्य बनेंगे। अनायास धन लाभ के योग हैं।


राशि फलादेश
सिंह
इच्छित लाभ होगा। दांपत्य सुख प्राप्त होगा। किसी कार्य में प्रतिस्पर्धात्मक तरीके से जुड़ने की प्रवृत्ति आपके लिए शुभ रहेगी।


राशि फलादेश
कन्या
आर्थिक हानि हो सकती है। पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण रहेगा। अपने काम से काम रखें। दूसरों की नकल न करें।


राशि फलादेश
तुला
राज्यपक्ष से लाभ होगा। स्वयं के निर्णय लाभप्रद रहेंगे। मानसिक संतोष, प्रसन्नता रहेगी। नए विचार, योजना पर चर्चा होगी।


राशि फलादेश
वृश्चिक
पूंजी संचय की बात बनेगी। पत्नी से आश्वासन मिलेगा। कार्य के विस्तार की योजनाएं बनेंगी। स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न करें।


राशि फलादेश
धनु
रोजगार में उन्नति एवं लाभ की संभावना है। पठन-पाठन में रुचि बढ़ेगी। उपहार मिल सकता है। संतान की चिंता दूर होगी। व्यापार में नई योजनाएं बनेंगी।


राशि फलादेश
मकर
लाभदायक समाचार मिलेंगे। सामाजिक एवं राजकीय ख्याति में अभिवृद्धि होगी। व्यापार अच्छा चलेगा। आवास संबंधी समस्या हल होगी।


राशि फलादेश
कुंभ
व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलेगा। कामकाज की अनुकूलता रहेगी। व्यावसायिक श्रेष्ठता का लाभ मिलेगा। आपसी संबंधों को महत्व दें।


राशि फलादेश
मीन
रुका धन मिलने से धन संग्रह होगा। राज्यपक्ष से लाभ के योग हैं। संतान की प्रगति संभव है। नई योजनाओं की शुरुआत होगी।
 

जीवन की परेशानियां

                         जीवन की परेशानियां 

 

राहु केतु का कापसर्प योग इस कुंडली में अपना पूरा प्रभाव दे रहा है। कालसर्प दोष मे एक खासियत देखने को मिलती है कि राहु के आसपास वाले ग्रह यानी राहु से दो घर आगे और राहु से दो घर पीछे वाले ग्रह राहु के कारण अपना कार्य नही कर पाते है,राहु के लिये कहा गया है कि यह काला नाग बनकर जो भी ग्रह राहु के आसपास होते है उन्हे गटकता चला जाता है,साथ ही केतु के साथ वाले जितने ग्रह होते है उन्हे केतु अपने बल से बचाये रहता है। मकर लगन की इस कुंडली मे लगनेश भी राहु के साथ है,जातक के द्वारा बहुत ही हाथ पैर मारे जा रहे है लेकिन राहु किसी भी प्रकार से जातक को आगे बढने का रास्ता नही दे रहा है। मकर लगन का मालिक शनि अपने शत्रु सूर्य की राशि मे विराजमान है इसलिये पारिवारिक सुख के साथ शिक्षा बुद्धि का सुख जल्दी से धन कमाने और प्रेम प्यार की बातो मे अपनी आशंका को देकर या भ्रम पैदा करने के बाद किसी भी प्रकार से लूटने का काम करता है। इसके साथ ही जीवन साथी और जीवन साथी की कारक वस्तुओ का भी खातमा करता है। राहु की निगाह केतु पर जाने से जो भी कारक जातक की सहायता मे आते है वह उन्हे ही अपनी शक्ति से बरबाद करने लगता है यानी जातक अपने परिवार से या अपने शरीर की मेहनत से जो भी धन कमाता है वह जातक के दोस्तो के रूप मे या साधनो के रूप मे खा जाते है कभी किसी का बिल कभी किसी का बिल का भुगतान करते करते जातक को यह लगने लगता है कि आखिर उसके साथ हो क्या रहा है। नगद धन की राशि वृष का मंगल भी जातक के द्वारा कमाये जाने वाले धन और की जाने वाली मेहनत से घर के सदस्यों के पेट के पालन और पहले से आने वाले खर्चे जैसे अस्पताल के खर्चे लोगो से लिये गये धन का ब्याज आदि देना भी माना जा सकता है इसके लिये यह मंगल आने वाले धन को किसी भी प्रकार से स्थिर नही रहने देता है। राहु के लिये एक और कारण मुख्य माना जाता है कि वह जिस ग्रह के साथ बैठता है उसकी पूरी शक्ति को अपने मे खींच लेता है,और अपने प्रभाव के अन्दर उस ग्रह की शक्ति को प्रदर्शित करने लगता है।

इस भाव में विराजमान शनि और राहू के लिए जो उपाय बताये गए है इनके अनुसार जो भी जातक का धर्म है उस शान पर रोजाना जाए और वहां से जो भी प्रसाद आदि मिलता है लाकर अपने घर में पूजा स्थान या किसी सुअक्षित स्थान में रखता रहे इस प्रकार से जैसे ही वह लगातार तीन महीने की अवधि उस स्थान में जाकर पूरी कर लेगा उसके लिए रास्ता खुलने लगेगा.वर्त्तमान में आय के घर के राहू के होने से जो भी आय है वह केवल जीवन की कुछ जरूरतों को पूरा करने के लिए मानी जा सकती है इसके बाद जब राहू अपना स्थान जनवरी दो हजार तेरह में बदलेगा तब जाकर किसी बात की धन और परिवार में तरक्की की आशा की जा सकती है| इस भाव के राहू के लिए एक बात और कही जाती है की जातक के अन्दर अगर किसी प्रकार से कबूतर बाजी यानी इश्क रोमांस या गलत संबंधो को लेकर चला जाएगा तो जातक के लिए यह राहू पल पल में दिक्कत को पैदा करने वाला होगा इसी के साथ अगर जातक के मित्रो में शराब कबाब भूत का भोजन करने वाले लोग है और वह अपनी मित्र मंडली या अपने द्वारा पैदा किये गए कारणों से दिक्कतों के कारण किसी प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन करता है तो भी राहू गलत असर देगा.गलत धंधे भी जातक के लिएय दिक्कत देने वाले हो सकते है.
उपायों के रूप में जातक अपने रहने वाले स्थान में राहू को स्थापित नहीं करे साथ ही इसकी यह पहिचान भी होती है की जातक की नाभि से लेकर छाती तक घने वालो का जखीरा होता है जो शेषनाग की उपस्थिति को जातक के लिए दर्शाता है,इस कारण से भी जातक की निगाह हमेशा की कामो की तरफ एक बार में होती है जिससे जो काम होना होता है वह रह जाता है और हो नहीं होना उसके लिए जातक अपने सर को पटकता रहता है.जातक अपने गले में केतु का पेंडल पञ्च धातु में पहिने सोमवार का व्रत करता रहे,पवित्र तीर्थ में स्नान करता रहे तथा मुफ्त में किसी से कुछ भी नहीं ले.नीले कपडे और नीली चीजो से परहेज करता रहे.परिवार में माता का कहना माने,घर से बाहर रहते हुए किसी भी क़ानून के विरुद्ध काम नहीं करे.आपने astrobhadauria साईट का प्रयोग किया है आप लाभ उठाये और सुखी रहे मेरी तरफ से यही आशीर्वाद और शुभकामनाये है.

 

लक्ष्य की प्राप्ति बनाम राहु की दशा

        लक्ष्य की प्राप्ति बनाम राहु की दशा 

 

 

रामकथा मे शिव पार्वती विवाह का वर्णन मिलता है.यह वर्णन राहु की दशा से पूर्ण कहानी के रूप मे समझ मे आ सकता है.केतु जो ब्रह्माण्ड की धुरी के रूप मे माना जाता है को ही शिव माना गया है,तथा पार्वती सती आदि उनकी पत्नी को राहु के रूप में उपस्थित किया गया है। शिवजी की पूर्व पत्नी सती का अपने पति के प्रति अपमान करने के कारण अपने पिता की यज्ञ मे शरीर को भस्म कर देने के बाद उनका पुनर्जन्म राजा हिमालय के यहां पार्वती के रूप मे हुया। नारद जी ने जब हिमालय के पुत्री जन्म का समाचार सुना तो वे उनके महल मे गये और पार्वती के प्रति अपनी भविष्यवाणी करने लगे,कहने लगे कि पार्वती संसार के सभी गुणो से पूर्ण है और अपने नाम को जगत की माता के रूप मे प्रकट करने वाली है,लेकिन इन्हे जो पति मिलेगा वह माता पिता से हीन होगा,हमेशा उदास रहने वाला होगा,जोगी के वेश मे होगा कोई कार्य नही करने वाला होगा उसे वस्त्र पहिनने और नही पहिनने से कोई मोह नही होगा,ऐसी रेखा पार्वती के हाथ मे है,सभी को पता था कि नारद जी का कथन कभी अधूरा नही होता था। नारद जी ने बाद मे कहा कि जो जो भेद पार्वती के पति के रूप मे बताये है वे सभी गुण भगवान शिव के अन्दर मिलते है.अगर पार्वती का विवाह शंकर जी के साथ हो जाता है तो सभी प्रकार से पार्वती का कल्याण ही माना जायेगा,इसलिये अगर पार्वती भगवान शिवजी को पति के रूप मे प्राप्त करने के लिये भगवान शिवजी की तपस्या करने लगे तो उन्हे वे पत्नी के रूप मे स्वीकार कर सकते है।

मन भगवान शिव की छवि को रखकर पार्वती जी जंगल मे जाकर तपस्या करने लगी,और अपने मन को पूर्ण रूप से भगवान शिव के प्रति अर्पित कर दिया.यही से गोस्वामी तुलसी दास जी ने राहु की दशा का पार्वती के लिये बहुत ही विचित्र तरीके से वर्णन किया है।

"संवत सहस मूल फ़ल खाये,सागु खाइ सत वरष गंवाये"

सहस नाम के संवत में केवल उन्होने मूल फ़ल यानी जडो के रूप मे प्राप्त फ़लो का भोजन किया और सात साल उन्होने शाक खाकर ही तपस्या की.कुछ दिन उन्होने पानी और हवा के सहारे ही बिताये और कुछ दिन उन्होने कठिन उपवास करके ही अपनी तपस्या को जारी रखा,बेल पत्री जो धरती पर सूखी पडी थी,सहस नाम के संवत मे तीन वर्ष तक उसी का सेवन किया। उसके बाद सूखे पत्ते भी खाने छोड दिये और उसी समय से उनका नाम अपर्णा रख दिया गया। जब शरीर सूख कर क्षीण हो गया उस समय उन्हे एक आकाशवाणी सुनाई दी,कि हे पार्वती ! तुम्हारी तपस्या सफ़ल हो गयी है,अपने कष्ट को भूल जाओ तुम्हे भगवान शिवजी पति रूप मे मिलेंगे.जैसे ही तुम्हारे पिता बुलाने के लिये आयें तुम अपने हठ को त्याग कर अपने घर चली जाना,जैसे ही सप्त ऋषि तुमसे मिलने आयें तभी यह प्रमाण मान लेना कि यह आकाशवाणी मिथ्या नही है। इतनी बात सुनने के बाद तपस्या से क्षीण शरीर मे स्फ़ूर्ति आ गयी।

इस प्रकार से पार्वती की राहु की दशा का अन्त हुआ और राहु की दशा समाप्ति के बाद गुरु की दशा लगते ही भगवान शिव के साथ उनका विवाह हुआ,जो हमेशा के लिये अमर हो गया।

राहु का समय शुरु होते ही जातक का दिमाग परिवेश के अनुसार भ्रम मे भर दिया जाता है। जो परिवेश आसपास का होता है जहां पर वह पैदा होता है वही तरह तरह के कारण व्यक्ति के दिमाग मे भर जाते है और उन्ही कारणो के अनुसार वह अपने जीवन को लेकर चलने लगता है। भगवान शिव की पहली शादी के रूप मे सती का रूप उनके साथ था,राहु का छलावा होने के कारण जब भगवान श्रीराम को वनवास हुआ था तो सती के दिमाग मे एक भ्रम भर गया कि जिस भगवान की पूजा शिवजी हमेशा करते है वही भगवान स्त्री वियोग के कारण वन मे भटक रहे है और सीते सीते रटने के अलावा उनके पास और कोई शब्द ही नही है। इसलिये उन्होने श्रीराम की परीक्षा लेने के लिये सीता का वेश बनाया और रास्ते मे बैठ गयी,उन्होने सोचा था कि अगर राम साधारण पुरुष होंगे तो उन्हे ही सीता समझ कर ग्रहण करने की कोशिश करेंगे,लेकिन हुआ उल्टा भगवान श्रीराम ने उन्हे पहिचान लिया और शिवजी के हाल चाल पूंछने लगे,शर्मिन्दा होकर सती भगवान शिव के पास गयी और शिवजी उन से जब पूंछा कि भगवान श्रीराम की परीक्षा कैसे ली तो उन्होने सीता बनकर परीक्षा लेने वाली बात को मन मे छुपा लिया और बोल दिया कि ऐसे ही परीक्षा ले ली थी,शिवजी ने ध्यान लगाकर देखा तो उन्हे समझ मे आ गया कि उन्होने जगतजननी सीता जो उनके लिये माता के समान थी का रूप धरने के बाद परीक्षा ली है,आराध्य की पत्नी के रूप मे वे सीताजी को माता के समान मानते थे,इसलिये उन्होने सती को त्याग दिया और अपने ध्यान मे रहकर अपने जीवन को बिताने लगे।

उपरोक्त भाव मे एक प्रकार का कथन कि राहु जब हावी होता है तो वह नाटक के पात्र की भांति जातक को आगे या पीछे ले जाने की अपनी योजना को सफ़ल करने की बात करता है,जैसे सती को पहले तो रूप परिवर्तन का ख्याल देना फ़िर शिवजी से ही झूठ बोलना कि ऐसे ही परीक्षा ली थी.पहले रूप परिवर्तन फ़िर झूठ बोलना यह राहु का मुख्य प्रभाव माना जाता है इसके बाद जब सती के पिता महाराज दक्ष ने यज्ञ किया और उस मे भगवान शिव को नही बुलाया लेकिन सती के अन्दर अपने पिता के प्रति मोह और यज्ञ को देखने की लालसा ने उन्हे शिवजी के मना करने पर कि जब पिता के द्वारा बुलाया नही गया है और वहां पर जाना उनके लिये दिक्कत देने वाला है और किसी भी कारण को पैदा किया जा सकता है,उनके मना करने के बाद भी वे अपने पिता की यज्ञ मे गयी और सभी को अपने अपने भाग का मिला देखना और अपने पति के भाग को नही देखने के कारण उन्होने अपने शरीर को उसी यज्ञ मे जला दिया। यह कारण भी राहु की दशा मे देखा जाता है कि व्यक्ति के अन्दर केवल अपनी सोच के अनुसार ही चलने की बात मानी जाती है व्यक्ति को अगर किसी प्रकार से मना किया जाये कि अमुक स्थान पर दिक्कत हो सकती है तो व्यक्ति के अन्दर एक ख्याल आता है कि पिछले किसी वैर भाव के कारण ही वह वहां जाने से मना कर रहा है और वह हठ से जाने की बात करता है लेकिन हठ से जाने के बाद उसे अपने जीवन से भी हाथ धोना पडता है। यह बात आगे राहु के अनुसार अपमान मौत और वैर लेने से कारण से निकलने के बाद राहु का प्रभाव आगे अपने प्रोग्रेस के जीवन के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करता है जिसके अन्दर व्यक्ति का स्वभाव केवल प्राप्ति करने के कारको मे अपने को लगा लेता है,उस धुन के आगे उसे कोई धुन समझ मे नही आती है कोई भी कितना भी बुद्धि वाला कारण उसे बताने की कोशिश करे उसे समझ मे नही आता है और अधिक कारण पैदा करने पर तर्क कुतर्क की बात भी करता है,राहु की दशा के अन्त मे राहु मे मंगल का अन्तर आने के बाद व्यक्ति को आत्महत्या या अस्पताली कारण या किसी प्रकार के भ्रम मे रहने के कारण या नशे मे रहने के कारण कोई कृत्य हो जाने के बाद वह इन्ही कारणो मे चला जाता है.इसके बाद गुरु की दशा लगने के बाद ही व्यक्ति का जीवन सही दिशा मे चलना शुरु हो जाता है.
 

कैसे पढें कुंडली के रहस्य

                 कैसे पढें कुंडली के रहस्य 

 

ज्योतिष से जीवन के रहस्य खोलने के लिए जन्म समय के अनुसार कुण्डली बनाना जरूरी होता है,अक्सर कुंडली बनाने के बाद उसके अन्दर भावो के अनुसार ग्रहों का विवेचन कैसे किया जाता है इस बात पर लोग अपने अपने ज्ञान के अनुसार कथन करते है,कई बार तो मैंने देखा है की कुंडली देखते ही कहना शुरू कर देते है की यह बात है इस बात का होना यह बात हुयी है लेकिन जो कुंडली को पूंछने के लिए आया है वह अपनी बात को कह ही नहीं पाया और तब तक दूसरे का नंबर आ गया,अपनी कुंडली को अपने आप जब तक पढ़ना नहीं आयेगा तब तक जीवन के भेद आप अपने लिए नहीं खोल पायेंगे,हर व्यक्ति के लिए तीन बाते जरूरी है की वह अपने समय को पहिचानना सीखे उसके बाद अपनी बात को दूसरे को समझना सीखे और तीसरी बात है की जब दुःख या कष्ट का समय है बीमारी है तो उसका अपने आप ही इलाज करना सीखे.समय को सीखना ज्योतिष कहलाता है और अपनी बात को समझाने की कला को मास्टर के रूप में जाना जाता है तीसरी बात जीवन के अन्दर आने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए वैद्य का होना भी जरूरी है,बाकी के काम जो जीवन में अपने लिए जरूरी है वे केवल कमाने खाने के लिए और लोगो के साथ रहने तथा आगे की संतति को चलाने से ही जुड़े होते है.ज्योतिष के अनुसार जब भेद खोले जा सकते है तो क्यों न भेद को खोल कर अपने हित के लिए देखा जाए और जो दिक्कत आने वाली है उसका निराकारण खुद के द्वारा ही कर लिया जाए तो कितना अच्छा होगा.आज कल कुंडली बनाने के लिए ख़ास मेहनत नहीं करनी पड़ती है कुंडली को बनाने के लिए बहुत से सोफ्ट वेयर आ गए उनके द्वारा अपनी जन्म तारीख और समय तथा स्थान के नाम से आप अपनी कुंडली को आसानी से बना सकते है.
उपरोक्त कुंडली में नंबर लिखे हुए और भावो के नाम लिखे है तथा ग्रहों के नाम लिखे हुए है.नंबर राशि से सम्बंधित है जैसे लगन जिस समय जातक का जन्म हुआ था उस समय तीन नंबर की राशि आसमान में स्थान ग्रहण किये हुए थी,एक नंबर पर मेष दूसरे नंबर की वृष तीसरे नंबर की मिथुन चौथे पर कर्क पांचवे पर सिंह छठे नंबर की कन्या सातवे नंबर की तुला आठवे की वृश्चिक नवे की धनु दसवे की मकर ग्यारहवे की कुम्भ और बारहवे नंबर की राशि मीन होती है.इसी प्रकार कसे लगन जो पहले नंबर का भाव होता है उसके अन्दर जो राशि स्थापित होती है वह लगन की राशि कहलाती है जैसे उपरोक्त कुंडली में तीन नंबर की मिथुन राशि स्थापित है.इससे बाएं तरफ देखते है चार नंबर लिखा है,इसी क्रम से भावो का रूप बना हुया होता है.पहले भाव को शरीर से दुसरे को धन से तीसरे को हिम्मत और छोटे भाई बहिनों से चौथे नंबर को माता मन मकान और सुख से पांचवे को संतान शिक्षा और परिवार से छठे भाव को दुश्मनी कर्जा बीमारी से सातवे नंबर के भाव को जीवन साथी पति या पत्नी के लिए आठवे भाव को अपमान मृत्यु जान जोखिम नवे को भाग्य और धर्म न्याय विदेश दसवे को कर्म और धन के लिए किये जाने वाले प्रयास ग्यारहवे को लाभ और बड़े भाई बहिन दोस्त के लिए बारहवे को खर्च और आराम करने वाले स्थान के नाम से जाना जाता है.
ग्रह तीन प्रकार के होते है एक अच्छे दुसरे खराब और तीसरे अच्छे के साथ अच्छे और खराब के साथ खराब.खराब ग्रहों में सूर्य मंगल शनि राहू केतु को माना जाता है अच्छे ग्रहों में चन्द्र बुध शुक्र और गुरु को माना जाता है लेकिन बुध और चन्द्रमा के बारे में माना जाता है की बुध जिस ग्रह के साथ होता है और अधिक नजदीक होने पर वह उसी ग्रह के अनुसार अपने काम करने लगता है तथा चन्द्रमा के बारे में कहा जाता है की वह शुक्र पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक बहुत अच्छा होता है तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी से अमावस्या तक बहुत खराब होता है बीच के समय में सामान्य अच्छा या बुरा फल देने वाला होता है.
कुंडली को पढ़ने के लिए सबसे पहले तीन बाते ध्यान में रखनी पड़ती है पहली तो ग्रह का स्थान दूसरा ग्रह के द्वारा कहाँ से प्रभाव लिया जा रहा है तीसरा ग्रह किस ग्रह के साथ बैठ कर क्या फल ग्रहण कर रहा है.इसके अलावा जो पांच बाते इसी के अन्दर आती है उनके अन्दर कुंडली में धन कहा है,कुंडली में खराब स्थान कहाँ है कुंडली में राज योग कहा है,कुंडली में ग्रह एक दूसरे को कहाँ एक दूसरे के बल को ग्रहण कर रहे है,और आखिर में देखा जाता है की कुंडली के अन्दर विशेषता क्या है?
उदाहरण के लिए उपरोक्त कुंडली को देखे,मिथुन लगन की कुंडली है इस लगन का मालिक बुध है,इसी प्रकार से हर राशि का अपना अपना मालिक होता है,जैसे लगन में मिथुन है तो उसका मालिक बुध है धन भाव में कर्क है तो इसका मालिक चन्द्रमा है तीसरे भाव में सिंह राशि है तो इसका मालिक सूर्य है चौथे भाव में कन्या राशि है तो इसका मालिक भी बुध है पंचम भाव में तुला राशि है तो उसका मालिक शुक्र है छठे भाव में वृश्चिक राशि है तो उसका मालिक मंगल है सप्तम में धनु राशि है इसका मालिक गुरु है अष्टम में मकर राशि है तो उसका मालिक शनि है नवे भाव में कुम्भ राशि है तो उसका मालिक भी शनि है दसवे भाव में मीन राशि तो उसका मालिक भी गुरु है लाभ भाव यानी ग्यारहवे भाव में मेष राशि है तो इसका मालिक भी मंगल है,बारहवे यानी खर्च के भाव में वृष राशि है तो उसका मालिक भी शुक्र है,इस प्रकार से सूर्य और चन्द्रमा के अलावा सभी ग्रहों की राशिया दो दो है.इन दो दो राशियों का भी एक गूढ़ है,एक राशि तो केवल सोचने वाली होती है और दूसरे राशि करने वाली होती है,जैसे बुध की मिथुन राशि तो सोचने वाली है और कन्या राशि कार्य को करने वाली है,उसी प्रकार से शुक्र की तुला राशि तो सोचने वाली होती है और वृष राशि करने वाली होती है गुरु की धनु राशि तो करने वाली होती है मीन राशि सोचने वाली होती है शनि की कुम्भ राशि तो सोचने वाली होती है और मकर राशि करने वाली होती है.वैसे चन्द्रमा के बारे में भी कहा जाता है की वह कृष्ण पक्ष में नकारात्मक सोच देता है तो शुक्ल पक्ष में सकारात्मक सोच देता है.सूर्य के बारे में भी कहा जाता है की वह दक्षिणायन यानी देवशयनी एकादशी से देवोत्थानी एकादसी तक नकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है और अलावा में सकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है.
इस कुंडली में बुध जो लगन का मालिक है वह जातक के बारे में बताता है की जातक धर्म न्याय और क़ानून के घर में है,यानी जातक का जन्म जहां हुआ है वह धर्म न्याय और क़ानून के लिए जाना जाता होगा.इसके अलावा ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा है,चन्द्रमा मेष राशि का है मेष राशि पुरुष ग्रह मंगल की राशि है,चन्द्रमा को राहू मंगल का बल लेकर सप्तम भाव से देख रहा है,राहू जिस भाव में जिस ग्रह के साथ होता है उसी का बल प्रदान करता है,राहू ने मंगल का बल लेकर चन्द्रमा को दिया है यानी जातक के कई बहिने है भाई है,राहू अपनी पहिचान नहीं देता है,केवल ग्रहों की पहिचान देता है,मंगल चन्द्र बुध केतु राहू के साथ है यानी राहू ने अपनी पांच दृष्टियों से चार को काम में लिया है.पहली दृष्टि जहां वह विराजमान है,दूसरी वह तीसरी दृष्टि से बुध को देख रहा है पंचम दृष्टि से वह चन्द्रमा को देख रहा है और सप्तम दृष्टि से वह केतु को देख रहा है.जातक के धन भाव को अष्टम स्थान से सूर्य गुरु और शुक्र देख रहे है,सप्तम से मंगल भी देख रहा है.जातक के छोटे भाई बहिनों के घर को बुध देख रहा है जातक के माता मन मकान को अष्टम में विराजमान गुरु देख रहा है,जातक के संतान शिक्षा और परिवार भाव को चन्द्रमा और केतु दोनों देख रहे है.जातक के कर्जा दुश्मनी बीमारी के भाव को बारहवा शनि देख रहा है,जातक के जीवन साथी के भाव में मंगल और राहू विराजमान है तथा केतु भी देख रहा है,जातक के अपमान मृत्यु और जान जोखिम के भाव के अन्दर सूर्य गुरु और शुक्र विराजमान है जातक के नवे भाव में बुध विराजमान है और केतु लगन से तथा बारहवे भाव से शनि की वक्र दृष्टि भी इस भाव पर आ रही है,जातक के कार्य भाव को केवल मंगल देख रहा है,तथा अष्टम का गुरु भी देख रहा है,जातक के लाभ भाव में चन्द्रमा है और चन्द्रमा को राहू मंगल की शक्ति को लेकर देख रहा है,जातक के खर्चे के भाव में शनि विराजमान है साथ ही गुरु अष्टम भाव से इस भाव को देख रहा है.इस प्रकार से ग्रहों की स्थिति और ग्रहों की निगाह को देखा जाता है,मंगल अपने स्थान और अपने स्थान से चौथे भाव में सप्तम भाव में तथा अष्टम भाव में देखता है,गुरु राहू केतु अपने स्थान अपने से तीसरे स्थान पंचम स्थान सप्तम स्थान और नवे स्थान को देखते है,शनि अपने स्थान और अपने स्थान से तीसरे स्थान सप्तम स्थान और दसवे स्थान को देखता है.सूर्य चन्द्र बुध शुक्र केवल अपने से सातवे स्थान को ही देखते है.जो ग्रह द्रश्य स्थान को देखता है उस स्थान पर अपना असर छोड़ता है और उस स्थान का प्रभाव उस ग्रह के अन्दर भी शामिल होता है.छठे भाव के ग्रह कर्जा दुश्मनी बीमारी पालने वाले होते है और ब्याज आदि से खाने वाले होते है,अष्टम के ग्रह गुप्त रूप से परेशान करने वाले होते है और जो भी भाग्य से धर्म से कमाया जाए उसे किसी न किसी रूप से खा जाते है.बारहवे भाव के ग्रह किसी न किसी कारण से खर्च करवाने वाले होते है.लेकिन छः आठ बारह में खराब ग्रह लाभ देने वाले होते है और अच्छे ग्रह परेशान करने वाले होते है.अगर अच्छे ग्रह छः आठ भारह में वक्री हो जाए तो अच्छा फल देने वाले होते है और खराब ग्रह अगर छः आठ बारह में वक्री हो जाए तो और भी खराब हो जाते है.जो ग्रह स्थान परिवर्तन कर लेते है यानी अपनी राशि को छोड़ कर एक दूसरे की राशि में बैठ जाते है वे भी समय पर अपने फलो को बदलाने के लिए माने जाते है.

 

कैरियर और कारकांश कुण्डली

               कैरियर और कारकांश कुण्डली

 

आज युवाओं के बीच सबसे अधिक चिंता का विषय आजीविका है.चिंता के इस विषय का समाधान ज्योतिष विधि से किया जाए तो मुश्किल काफी हद तक आसान हो सकती है.ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार हमारी कुण्डली में सब कुछ लिखा है बस उसे गहरी से जानने की आवश्यकता है.आइये जानें क्या कहती है कुण्डली कैरियर के बारे में.

आजीविका और कैरियर के विषय में दशम भाव को देखा जाता है (Tenth Bhava is for Career).दशम भाव अगर खाली है तब दशमेश जिस ग्रह के नवांश में होता है उस ग्रह के अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है.द्वितीय एवं एकादश भाव में ग्रह अगर मजबूत स्थिति में हो तो वह भी आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार व्यक्ति की कुण्डली में दशमांश शुभ स्थान पर मजबूत स्थिति में होता है (Strongly placed tenth lord) तो यह आजीविका के क्षेत्र में उत्तम संभावनाओं का दर्शाता है.दशमांश अगर षष्टम, अष्टम द्वादश भाव में हो अथवा कमज़ोर हो तो यह रोजी रोजगार के संदर्भ में कठिनाई पैदा करता है.

जैमिनी पद्धति के अनुसार व्यक्ति के कारकांश कुण्डली में लग्न स्थान में सूर्य या शुक्र होता है तो व्यक्ति राजकीय पक्ष से सम्बन्धित कारोबार करता है अथवा सरकारी विभाग में नौकरी करता है.कारकांश में चन्द्रमा लग्न स्थान में हो (Moon in Ascendant in Karakamsh Kundali) और शुक्र उसे देखता हो तो इस स्थिति में अध्यापन के कार्य में सफलता और कामयाबी मिलती है.कारकांश में चन्द्रमा लग्न में होता है और बुध उसे देखता है तो यह चिकित्सा के क्षेत्र में कैरियर की बेहतर संभावनाओं को दर्शाता है.कारकांश में मंगल के लग्न स्थान पर होने से व्यक्ति अस्त्र, शस्त्र, रसायन एवं रक्षा विभाग से जुड़कर सफलता की ऊँचाईयों को छूता है.

कारकांश लग्न में जिस व्यक्ति के बुध होता (Mercury in Ascendant of Karakamsh Kundali) है वह कला अथवा व्यापार को अपनी आजीविका का माध्यम बनता है तो आसानी से सफलता की ओर बढ़ता है.कारकांश में लग्न स्थान पर अगर शनि या केतु है तो इसे सफल व्यापारी होने का संकेत समझना चाहिए.सूर्य और राहु के लग्न में होने पर व्यक्ति रसायनशास्त्री अथवा चिकित्सक हो सकता है.

ज्योतिष विधान के अनुसार कारकांश से तीसरे, छठे भाव में अगर पाप ग्रह स्थित हैं या उनकी दृष्टि है तो इस स्थिति में कृषि और कृषि सम्बन्धी कारोबार में आजीविका का संकेत मानना चाहिए.कारकांश कुण्डली में चौथे स्थान पर केतु (Ketu in fourth house of Karakamsh Kundali) व्यक्ति मशीनरी का काम में सफल होता है.राहु इस स्थान पर होने से लोहे से कारोबार में कामयाबी मिलती है.कारकांश कुण्डली में चन्द्रमा अगर लग्न स्थान से पंचम स्थान पर होता है और गुरू एवं शुक्र से दृष्ट या युत होता है तो यह लेखन एवं कला के क्षेत्र में उत्तमता दिलाता है.

कारकांश में लग्न से पंचम स्थान पर मंगल (Mars in fifth house of Karakamsh Kundali) होने से व्यक्ति को कोर्ट कचहरी से समबन्धित मामलों कामयाबी मिलती है.कारकांश कुण्डली के सप्तम भाव में स्थित होने से व्यक्ति शिल्पकला में महारत हासिल करता है और इसे अपनी आजीविका बनाता है तो कामयाब भी होता है.करकांश में लग्न से पंचम स्थान पर केतु व्यक्ति को गणित का ज्ञाता बनाता है.
 

Saturday 28 March 2015

क्या बोलता है आपका चेहरा



 चौकोर चेहरा, गोल चेहरा, तिकोना चेहरा, मोटी नाक, तीखी नाक, वगैरह-वगैरह के बारे में आपने किस्से तो बहुत सुने होंगे। सौंदर्य के पैमाने पर भी इन्हें कसा होगा। पर शायद ही इनके ज्योतिषीय पक्ष को समझने की कोशिश की हो। आइए जानते हैं चेहरे का कौन-सा भाग व्यक्तित्व के किस पक्ष से रू-ब-रू कराता है। बता रही हैं वंदना अग्रवाल
आपके चेहरे का हर हिस्सा आपके बारे में बयां करता है। चेहरे के विभिन्न अंगों की मदद से आप सामने वाले व्यक्ति की पर्सनेलिटी को जान सकती हैं। चेहरे का कौन-सा हिस्सा क्या कहता है, आइए जानें:
चेहरे का आकार
सरकुलर चेहरा चंद्रप्रधान होता है। ऐसे चेहरे वाले लोग कल्पनाशील, घरेलू, आलसी और ऊर्जा की कमी महसूस करने वाले होते हैं। चौकोर चेहरे वाले लोग मजबूत और आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं। पृथ्वी तत्व की प्रधानता वाले ये लोग शारीरिक क्षमता और शक्ति पर भरोसा करते हैं। वहीं आयताकार चेहरे वाले लोग ईमानदार और डिप्लोमेटिक स्वभाव के होते हैं। नेतृत्व क्षमता से भरपूर ये लोग अच्छे पदों पर रहते हैं और राजनीति में सफलता प्राप्त करते हैं। तिकोने चेहरे वाले लोग गुस्सैल स्वभाव के होते हैं। ऐसे लोग अक्सर प्रतिभा की कमी से भी जूझते हैं। इनके हिस्से में व्यवहारकुशलता भी कम ही आती है। इसके विपरीत ठुड्डी की ओर से नुकीले चेहरे वाले लोग खुशमिजाज होते हैं। कभी-कभी ऐसे लोग हाइपरएक्टिव भी दिखते हैं।
माथे की रूपरेखा
माथे का सबसे ऊपरी हिस्सा यानी हेयरलाइन पूर्वजों के प्रति व्यक्ति की आस्था बताता है। हेयरलाइन बताती है कि व्यक्ति अपने पूर्वजों के काम को आगे बढ़ाने में विश्वास रखता है और उनकी शिक्षा-दीक्षा का सम्मान करता है। हेयर लाइन के बाद आने वाला टॉप फोरहेड यानी ऊपरी माथा यह बताता है कि व्यक्ति कितनी यात्राएं करेगा। यदि रेखाएं सीधी हैं, टूटी-फूटी नहीं हैं, तो जीवन में इन यात्राओं के सार्थक परिणाम मिलते हैं। इसके विपरीत यदि रेखाएं टूटी-फूटी हैं, तो सही परिणाम नहीं मिलते। व्यक्ति को शारीरिक हानि भी उठानी पड़ सकती है। सेंट्रल फोरहेड से करियर के बारे में पता चलता है। यह यदि स्पष्ट है और वहां पर आयु के अनुरूप सीधी रेखाएं हैं, तो व्यक्ति करियर के प्रति बहुत ज्यादा उत्साही होता है। करियर को जीवन में सर्वाधिक महत्व देता है। यदि माथा अंदर की ओर धंसा हुआ है, तो व्यक्ति करियर के प्रति उदासीन होता है।
होंठों का आकार
अपर लिप जीवन में स्नेह प्रदर्शित करता है। यदि यह लंबा है, तो जीवन में स्नेह की कमी रहती है। यदि यह चेहरे के अनुरूप बैलेंस है, तो व्यक्ति को भरपूर स्नेह मिलता है। यदि होंठ के दोनों ओर गड्ढे बनते हैं, तो मनुष्य के जीवन में स्नेह की अधिकता रहती है।
नाक का आकार
नाक की टिप से किसी भी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। अगर यह संतुलित है, तो व्यक्ति आर्थिक रूप से समृद्ध होता है।
क्या कहती हैं भौंहें और पलकें
भौं से भाई-बहन-परिवार के बारे में पता चलता है। यदि भौं उठे हुए और नुकीले हों, तो भाई-बहनों की संख्या कम होती है। भाई-बहनों से संबंध भी अच्छे नहीं होते। घनी पलकें व्यक्ति के संपत्तिवान होने की निशानी होती हैं।
आंखों की भाषा
यदि पुतलियां आंख के ऊपरी हिस्से को अधिक छूती हैं, तो व्यक्ति के व्यवहार में एकरूपता का अभाव होता है। ऐसे लोग विश्वसनीय नहीं होते। जिन लोगों की पुतली आंख के निचले हिस्से को ज्यादा छूती है, वे लोग निष्ठुर होते हैं। इसीलिए फिल्मों में ऐसी आंखों वाले लोगों को अधिकांशत: विलेन के रोल के लिए चुना जाता है। अगर पुतली आंख के आकार के मुकाबले बड़ी है, तो व्यक्ति अपनी भावनाओं को छुपा नहीं पाता। ऐसे लोग एक्स्ट्रोवर्ट होते हैं। छोटी पुतली वाले लोग गोपनीय प्रवृत्ति के होते हैं। दोनों आंखों के बीच अनुपात से ज्यादा दूरी वाले लोग खर्चीले स्वभाव के होते हैं।

सिर की बनावट देखकर समझें ये बातें...

        सिर की बनावट देखकर समझें ये बातें...


 सिर की बनावट देखकर समझें ये बातें...
- जिन लोगों के सिर की लंबाई ज्यादा हो और चौड़ाई कम हो ऐसे लोग जीवन में सभी सुविधाएं प्राप्त करते हैं।
- जिस व्यक्ति का सिर आकार में मध्यम रहता है वे लोग पैसों के मामले में काफी भाग्यशाली रहते हैं।
- यदि किसी व्यक्ति का सिर अन्य लोगों की अपेक्षा अलग दिखता है, बड़ा और चौड़ा होता है वे लोग जीवन में काफी परेशानियां का सामना करते हैं।
बालों को देखकर जानें ये बातें
- जिस व्यक्ति के बाल काले और मुलायम और सुंदर होते हैं वे धनी होते हैं और सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं।
- जिन लोगों के बाल पतले होते हैं वे लोग अच्छे स्वभाव के लोग होते हैं।
- रूखे और सख्त बाल वाले लोग बहादुर होते हैं, लेकिन वे संकुचित मानसिकता वाले होते हैं।
- एकदम सूर्ख रंग के बाल वाले लोग गरीब और परेशान होते हैं। जबकि सुनहरे बाल वाले लोगों का जीवन स्तर मध्यम रहता है।
भौंहें देखकर जानिए ये बातें
- सुंदर और बारिक भौंहे वाले व्यक्ति धन संबंधी कार्यों में विशेष लाभ कमाने वाले होते हैं।
- जिन लोगों की दोनों भौंहे आपस में मिली हुई होती हैं वे अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक चतुर और चालक होते हैं।
- यदि किसी व्यक्ति की भौंहों के बाल रूखे और बेजान दिखाई देते हैं वे लोग जीवन में धन की कमी का सामना करते हैं। इन का लोगों का व्यवहार काफी सख्त होता है।
- ऐसे लोगों को जीवन में पूर्ण ऐश्वर्य मिलता है, जिनकी भौंहें चौड़ी होती हैं और आपस में मिलती नहीं हैं।
आंखें देखकर जानिए ये बातें
- यदि किसी व्यक्ति की आंखें बिल्ली की आंखों के समान दिखाई देती हैं तो वह इंसान दुराचारी हो सकता है।
- जिन लोगों की आंखों में सूर्ख रंग के डोरे दिखाई देते हैं वे लोग जीवन में पूर्ण सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं। यदि ऐसी आंखें किसी स्त्री की हों तो वह काफी अधिक धन लाभ अर्जित करती हैं।
- जिन लोगों की आंखों में हमेशा गुस्सा दिखाई देता है वे लोग बहादुर होते हैं और साहस के बल पर कार्य पूर्ण कर लेते हैं।
कान देखकर जानिए ये बातें
- जिन लोगों के कान सामान्य आकार से अधिक लंबे दिखाई देते हैं वे लोग लंबी उम्र जीते हैं और इन्हें काफी पैसा भी प्राप्त होता है।
- लंबे और पतले कान वाले लोग अच्छे स्वभाव वाले और समाज में मान-सम्मान प्राप्त करने वाले होते हैं।
- जिन लोगों के कान पर अधिक बाल दिखाई देते हैं वे मेहनत करते हैं लेकिन उचित फल प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
- छोटे कान वाले लोगों का जीवन सामान्य होता है। यदि ये लोग अधिक मेहनत करते हैं तो सकारात्मक फल अवश्य प्राप्त होते हैं।
नाक देखकर जानिए ये बातें
- जिन लोगों की नाक ऊंची और बड़ी होती है वे भाग्यशाली होते हैं और जीवन में कई उपलब्धियां हासिल करते हैं।
- ऐसे लोग बहुत समझदार और किस्मत के धनी होते हैं, जिनकी नाक तोते की चोंच के समान होती हैं। ऐसी तीखी नाक वाले लोग दिमागी कार्य में पारंगत होते हैं।
- जिन लोगों की नाक छोटी सी दिखाई देती है वे लोग स्वभाव से अच्छे होते हैं। जबकि छोटी और मोटी नाक वाले लोगों को कम अक्ल होते हैं।
पलक देखिए और जानिए ये बातें
- यदि किसी व्यक्ति की पलक पर बाल बहुत कम हैं तो वह इंसान शौकिन मिजाज होता है। ऐसे लोग शान और शौकत में जीवन व्यतीत करते हैं।
- ऐसे लोग गरीब होते हैं जिन लोगों की पलक के बाल सख्त होते हैं। इन लोगों को जीवन में काफी परिश्रम करना पड़ता है, लेकिन सकारात्मक फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

स्त्रियों में तिल का फल:होंठों को देखकर :

 स्त्रियों में तिल का फल:होंठों को देखकर : 

 

1)स्त्री के सिर के मध्य भाग मे तिल उसे पति का पूर्ण सुख पाने वाली,शुद्ध हृदय व सम्पूर्ण ऐश्वर्या प्राप्त करने वाली बनाता हैं | सिर की दायीं ओर का तिल समाज मे प्रतिष्ठित परंतु उदास स्वभाव वाली स्त्री का होना बताता हैं जिसे विवाह के बाद विदेश मे रहना पड़ता हैं तथा सिर के बाईं ओर का तिल उसे दुर्भाग्यशाली बनाता हैं |
2)जिस स्त्री के ललाट पर काले रंग का तिल होता हैं वह पुत्रवान,सौभाग्यवान,धार्मिक स्वभाव व दयालु प्रवृति की होती हैं | ललाट की दायीं और तिल स्त्री के जन्म स्थान से दूर रहने वाली,अच्छे स्वभाव की स्त्री होना बताता हैं जिसे संतान कष्ट रहता हैं | ललाट के बीचोबीच तिल स्त्री को कला कुशल परन्तु कठोर वचन कहने वाली बनाता हैं | जबकि ललाट के बाईं और का तिल स्त्री को पति सुख मे कमी दर्शाता हैं |
3)स्त्री के भोहों के मध्य भाग मे तिल उसे सरकार से ऊंच पद का लाभ प्राप्त करवाता हैं अर्थात वह या उसका पति सरकारी नौकरी वाले होते हैं |किसी एक भोह मे बना तिल स्त्री के स्वभाव मे ओछेपन का प्रतीक होता हैं ऐसी स्त्री का विवाह बेमेल होता हैं |
4)स्त्री की आँखों के ऊपर या नीचे तिल होतो वह स्त्री अनुचित तरीके से धन संचय करने वाली तथा संतान विहीन होती हैं जो अपने स्वास्थ्य की सही से देखभाल नहीं करती हैं उसकी आयु भी कम होती हैं |जबकि स्त्री की आँख मे तिल पति की प्रियतमा होने की सूचना देता हैं |
5)स्त्री की दायीं ओर आँख के नीचे गाल पर तिल होतो स्त्री धार्मिक व सदाचारिणी होती हैं जिसे हर जगह मान समान व यश प्राप्त होता हैं जबकि बाईं ओर आँख के नीचे गाल पर तिल होतो ऐसी स्त्री अत्यधिक काम वासना से पीड़ित रहती हैं जिसके उसकी उम्र से छोटे कई प्रेमी होते हैं |
6)स्त्री के कान मे तिल उसके आभूषण प्रिया होने की सूचना देते हैं जबकि कान के नीचे तिल उसकी अन्य स्त्रीओ से शत्रुता के बारे मे बताते हैं |
7)स्त्री के नाक के अग्रभाग मे लाल रंग का तिल उसके सौभाग्यशाली व ऊंचाधिकारी की पत्नी होने का सूचक होता हैं |
8)स्त्री के मुख मे तिल उसके सुखी,सम्पन्न व सज्जन होने की सूचना देता हैं उपरी होंठ पर तिल स्त्री के शिक्षावान होने का संकेत देता हैं ऐसी स्त्री अच्छी वक्ता या शिक्षिका होती हैं |
9)स्त्री के बाएँ गाल मे काला तिल उसके ऐश्वर्या पूर्ण जीवन के बारे मे बताता हैं जो भोग विलास मे अधिक रुचि रखती हैं जबकि लाल तिल उसके मिष्ठान प्रिय होने के बारे मे बताता हैं तथा दायें गाल पर तिल स्त्री को किसी असाध्य बीमारी होने के बारे मे बताता हैं |
10)स्त्री की ठोड़ी मे तिल उसके मिलनसार ना होने का पता बताता हैं जो किसी से भी घुलना मिलना पसंद नहीं करती हैं जिन्हे आम भाषा मे लजीली स्त्री कहते हैं |
11)स्त्री के कंठ मे तिल हो तो वह अपने घर मे हुकूमत चलाना पसंद करती हैं सब पर नियंत्रण रखना चाहती हैं |12)स्त्री के हृदय स्थान मे तिल सौभाग्य का प्रतीक होता हैं बाएँ स्तन पर लाल तिल होतो स्त्री के पुत्र जन्म बाद विधवा हो जाने का सूचक होता हैं काला तिल होतो उस स्त्री की मृत्यु किसी दुर्घटना से होती हैं जबकि दायें स्तन मे तिल स्त्री की कन्या संतान की अधिकता बताता हैं |
13)स्त्री की बाईं भुजा मे तिल उसके कला,काव्य,अभिनय,संगीत इत्यादि के क्षेत्र से जुड़ा होने का प्रतीक होता हैं जिससे उसे धन व यश प्राप्त होता हैं |
14)स्त्री के गुप्त स्थान के दायीं ओर तिल होतो वह राजा अथवा ऊंचाधिकारी की पत्नी होती हैं जिसका पुत्र भी आगे चलकर अच्छा पद प्राप्त करता हैं |
15)स्त्री की जंघा पर तिल उसके यात्रा व भ्रमण प्रिया होने की सूचना देते हैं
16)स्त्री के पाँव के टखने मे तिल उसकी दरिद्रता भरे जीवन की सूचना देता हैं |
 मुखा कृति बिज्ञान
दिल की बात कहता है चेहरा

मुख अर्थात् मुख्य एक शरीर में सर्वाधिक चेतनामय, ऊर्जामय, ज्ञानमय व प्रज्ञामय भाग व्यक्ति का मुख ही है। आंख, कान, नाक व मुख सहित मस्तिष्क के सभी ज्ञानमय व स्मृति केन्द्रों का संरक्षक (चेहरा) ही तो है। ब्रह्मा जी के चार मुख, शिवजी के पांच मुख, रावण के दस सिर (दसग्रीव) भगवान दत्तत्रेय के तीन मुख आदि मुख के विशिष्ट गुणों की व्याख्या करते हैं।
‘ब्राह्मणों मुखम आसीत्’ अर्थात् परमात्मा के मुख से ही ज्ञानवान, प्रज्ञामय संस्कारी ब्राह्मणों का आविर्भाव हुआ। अर्थात देखने की क्षमता, सुनने की पात्रता, श्वांस लेने की योग्यता व आहार करने की पवित्रता की प्राप्ति जिस मुख की मदद से मनुष्य करता है, वह (मुख) सर्वश्रेष्ठ अंग ब्रह्म तुल्य है। देखना अर्थात ‘दृष्टा’, सुनना अर्थात श्रोता, प्राणायाम अर्थात योग शिक्षा तथा आहार दक्षता यह सभी आध्यात्मिक गुण चेहरा अर्थात मुखमंडल देखकर ही आप जान सकते हैं।
‘मुखाकृति विज्ञान’ में महारथ हासिल कर आप निम्न बातों का पता आसानी से लगा सकते हैं।
1 बुद्धिमत्ता या मूर्खता
2 स्मरण शक्ति कमजोर या तेज
3 दयालुता या कठोरता
4 साहसी या दब्बू
5 दृढ़ निश्चयी या लचीला स्वभाव
6 देशप्रेमी या देशद्रोही
7 धनवान या निर्धन
8 सामाजिक या समाज विरोधी
9 स्वस्थ या बीमार
इन सभी गुणों व अवगुणों को आप चेहरे पर आंख, मस्तक, भौंहे, नाक, कान, पलकें, होंठ, जबड़ा, ठोड़ी आदि देखकर जान सकते हैं।
प्रत्येक मनुष्य की मुखाकृति में आप यदि ध्यान से देंखे तो किसी न किसी की झलक आपको दिखाई देगी। किसी के चेहरे पर शेर जैसा प्रभाव दिखाई देता है, तो कोई वानर जैसे मुख वाला होता है। कोई भेड़, तोता, गिद्ध, भैंसा, लोमड़ी आदि अनेक स्वभाव व चेहरे जैसा रूप वाला होता है। संक्षेप में मुखाकृति विज्ञान के रहस्य आपके ज्ञानवर्धन के लिये निम्न प्रकार है।
मुख के तीन भाग:
1 मस्तक या ललाट
2 भौंहों से नाक के अग्र भाग तक
3 नाक के अग्र भाग से बेड़ी तक
1 मस्तक या ललाट (पहला भाग)- इस भाग में भौंहों से ऊपर मस्तक या ललाट का भाग होता है। यह भाग यदि बड़ा हो या उन्नत हो तो व्यक्ति बुद्धिमान, तेज स्मृति वाला, नई बातों को सीखने वाला, काव्य व योग का ज्ञाता है। जीवन की समस्याओं का समाधान बौद्धिक बल से सोच-विचार कर लेते हैं।
2 भौंहों से नासिका तक (द्वितीय भाग)- भौंहों से नासिका के अग्र भाग तक यह भाग होता है। भौंहे, आंखें, नाक, कान व कनपटी आदि अंग इस भाग में आते हैं। नासिका व आंखों का सर्वाधिक महत्व होता है। यदि यह दोनों अंग विकसित, उन्नत व शुभ हो तो व्यक्ति स्वाभिमानी और भावेश को नियंत्रण में रखने की सामर्थ्य होती है। आर्थिक स्थिति, व्यापार या नौकरी में क्या शुभ है जाना जा सकता है। जातक कितना भाग्यवान है। जीवन में संघर्ष से जूझने की कितनी शक्ति है, नासिका व आंखों की बनावट से जाना जाता है।
जिनके प्रथम खंड से दूसरा खंड अधिक विकसित व लंबा होता है, वे हठी, दृढ़ निश्चय वाले, बाधाओं का डटकर सामना कर सफल होते हैं। यदि प्रथम खंड से दूसरा खंड छोटा हो त व्यक्ति पराजित होकर अवसाद में आने वाला, उचित निर्णय लेने में अशक्त होता है। कभी दोगला स्वभाव भी देखा जाता है। कभी शांत तो कभी उग्र रूप में दिखाते हैं।
3 नाक से ढोढ़ी तक (तीसार भाग)- नासिका के उग्रभाग से ढोड़ी तक का भाग इस खंड में आता है। इस भाग में मूंछों का स्थान, होंठ, कपोल, जबड़ा व ठुड्डी आदि भाग आते हैं। मुख का यह भाग 50 वर्ष की आयु के बाद जातक का जीवन कैसे चलेगा, यह जाना जा सकता है। वर्गाकर व गोलाई यदि दृढ़ता युक्त हो तो शुभ माने जाते हैं। यदि ठोड़ी पीछे की ओर हटी हुई हो या नुकीली हो तो वृद्धावस्था में स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल नहीं बना पाते हैं। आगे की ओर निकली हुई ठोड़ी व वर्गाकर ठोड़ी वाले जातक जिद्दी आत्मविश्वासी व तर्क युक्त तथा परिस्थितियों के अनुकूल जीने वाले होते हैं। जिनका यह भाग पहले भाग के बराबर या अधिक लंबा हो वे वृद्धावस्था में सुखी जीवन जीते हैं। यदि पहला भाग तीसरे भाग से अधिक लंबा हो तो व्यक्ति अन्तर्मुखी व ध्यानमग्न होता है, यदि तीसरा भाग पहला भाग से लंबा हो

 भौहों को देखकर समझे व्यक्ति का स्वभाव

तिलों का ज्योतिष में महत्व

                          तिलों का ज्योतिष में महत्व 

 

तिल मानव शरीर पर उभरे काले रंग के छोटे धब्बेनुमा दाग या निषान होते हैं। तिलों के अध्ययन के द्वारा हम शरीर के विभिन्न भागों में स्थित तिलों के बारे में समझ पाते हैं। कई तिल तो शरीर में जन्मजात होते हैं लेकिन कई तिल ऐसे भी होते हैं जो कि हमारे जीवन काल में उत्पन्न होते हैं और अदृष्य भी हो जाते हैं तथा इनका रंग व आकार भी बदलता रहता है। यह भाग्य में बदलाव का संकेत देते हैं। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यह तिल मानव जीवन के कई रहस्यों से पर्दा उठाते हैं। मानव शरीर पर बने तिल सिर्फ सौन्दर्य की ही वस्तु नहीं होती वरन इसके द्वारा मानव व्यवहार के कई रहस्य जाने जा सकते हैं जैसे माथे पर तिल का होना मनुष्य को भाग्यवान बनाता है जबकि होठों पर तिल कामुकता को दर्षाता है। सामुद्रिक शास्त्र में तिल और मस्सों आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है । एक उभरे हुए तिल को मस्से के रूप में जाना जाता है। तिल स्त्री के शरीर पर बायंे भाग में तथा पुरूष के शरीर पर दायें भाग में शुभ जाने जाते हैं। शहद जैसे भूरे, पन्ना की तरह हरे एवं लाल रंग के तिलों को काले तिलों की अपेक्षा अधिक शुभ माना जाता है। भारतीय और चीनी ज्योतिष में तिलों को जातक के भाग्य के सूचक के रूप में जाना जाता है। जातक के ऊपर ग्रहों का प्रभाव मां के गर्भ में भ्रूण के निर्माण के साथ ही आरम्भ हो जाता है। कुछ ग्रह भ्रूण पर अधिक प्रभाव डालते हैं तथा कुछ ग्रह कम प्रभाव डालते हैं। ग्रहों का ये प्रभाव तिलों के निर्माण के रूप में सामने आता है जोकि शरीर की सतह पर दिखाई देते हैं। ज्योतिष के अनुसार तिलों का महत्व उनके आकार के साथ बढ़ता जाता है । तिलों तथा जन्मचिह्नों का स्पष्टीकरण दो तत्वों पर निर्भर करता है- प्रथम उनका भौतिक बनावट तथा द्वितीय जातक के शरीर का वह भाग जहाँ वह स्थित होते हैं। संकेत निधि स्पष्ट रूप से यह इंगित करते हैं कि तिलों का एक निष्चित प्रभाव होता है। शरीर के विभिन्न भागों में स्थित तिल राषि चक्र को सूचित करते हैं जिसके द्वारा जातक का जीवन विषेष रूप से प्रभावित होता है। ज्योतिष में प्रत्येक राषि चक्र शरीर के विषेष भाग पर प्रभुत्व रखता है। जैसे कि मेष राषि - मस्तक, वृष राषि - चेहरा, गर्दन, गला, दायां नेत्र तथा नाक, मिथुन राषि - बाँहें, कंधे, दायां कान, पसली का ऊपरी भाग तथा दाया हाथ, कर्क राषि -छाती, स्तन, पेट, कुहनी, फेफडे़, सिंह राषि - हृदय आदि । तिलों में आकार का महत्व छोटे तिल-वह तिल जो कि इतने छोटे होते हैं कि उनको साधारणतया देखा नहीं जा सकता, ज्यादा प्रभाव नहीं डालते हैं । बडे़ तिल-बडे़ तिल जातक के जीवन को विषेष रूप से प्रभावित करते हैं। लम्बे तिल-लम्बे तिल प्रायः अच्छे परिणाम देते हैं। रंग के आधार पर तिलों का महत्व हल्के रंग के तिल-हल्के रंग के तिल प्रायः शुभ होते हैं। लाल रंग के तिल या शहद के रंग के या हरे रंग के तिल सामान्यतः भाग्य में शुभता के सूचक होते हैं । काले तिल-प्रायः अच्छे नहीं माने जाते हैं। इच्छित परिणाम के रास्ते में बाधक होते हैं। मानव शरीर में स्थिति के आधार पर तिलों का महत्व मस्तक या ललाट के दायीं ओर तिल व्यक्ति को ऐष्वर्यषाली एवं भाग्यषाली बनाता है जबकि बायीं ओर तिल साधारण फल ही देते हैं। लेकिन स्त्रियों में बायीं ओर का चिह्न शुभ फल देता है। दायीं कनपटी पर तिल षीघ्र विवाह का सूचक होता है। सुन्दर पत्नी, अचानक धन लाभ भी देता है। बायीं कनपटी का तिल अचानक विवाह के योग बनाता है साथ ही धनप्राप्ति भी देता है लेकिन वह धन शीघ्र नष्ट होने वाला होता है। स्त्रियों के बायंे गाल पर स्थित तिल पुत्र दायक होता है तथा बुढ़ापे में संतान सुख भी मिलता है। यदि तिल भौहों की नोक या माथे पर होता है तो स्त्री को राजपद की प्राप्ति होती है। नाक के अग्रभाग में स्थित तिल स्त्री को परम सुख की भागी बनाता है। भौहों के मध्य रिक्त स्थान पर स्थित तिल अति शुभ होते हैं। दाहिनी भौंह पर तिल सुखमय दांपत्य जीवन का संकेत है जबकि बायीं भौंह पर तिल विपरीत फल देता है। पलकों पर तिल शुभ नहीं माने जाते तथा भविष्य में किसी कष्ट के आने का संकेत देते हैं। कनपटी पर तिल जातक को वैरागी या संन्यासी बनाते हैं। नाक के अग्रभाग पर तिल व्यक्ति को विलासी बनाता है। गाल पर तिल पुत्र प्राप्ति का सूचक है। ऊपरी होंठ पर स्थित तिल धनवान और प्रतिष्ठावान बनाता है जबकि नीचे के होंठ पर तिल जातक के कंजूस होने का संकेत देता है । नाक की टिप पर तिल जातक के लिए शुभ होता है। नाक के दाहिनी तरफ तिल कम प्रयत्न के साथ अधिक लाभ देता है जबकि बायीं तरफ का तिल अषुभ प्रभाव देता है। ठोड़ी पर तिल का होना भी शुभ होता है। व्यक्ति के पास हमेषा धन प्राप्ति का साधन रहता है तथा वह अभावों में नहीं रहता है। गले में स्थित तिल व्यक्ति के दीर्घायु होने का संकेत देता है तथा व्यक्ति को ऐषोआराम के साधन बड़ी सुगमता से मिलते रहते हैं । गले पर तिल वाला जातक आरामतलब होता है। गले के आगे के भाग में तिल वाले जातक के मित्र बहुत होते हैं जबकि गले पर पीछे तिल होना जातक के कर्मठ होने का सूचक है। गले के पीछे स्थित तिल व्यक्ति को सौभाग्यषाली बनाते हैं लेकिन कंधे और गर्दन के जोड़ पर स्थित तिल का फल शुभ नहीं होता है। कानों पर स्थित तिल विद्या व धनदायक होते हैं । हाथ की उंगलियों के मध्य स्थित तिल जातक को सौभाग्यषाली बनाते हैं। अंगूठे पर तिल जातक को कार्यकुषल, व्यवहार कुषल तथा न्यायप्रिय बनाता है। तर्जनी पर तिल जातक को विद्यावान, गुणवान, धनवान लेकिन शत्रु से पीड़ित बनाता है। मध्यमा पर तिल शुभ फलदायी होता है। जातक का जीवन सुखी व शांतिपूर्ण होता है। अनामिका पर तिल जातक को विद्वान, यषस्वी, धनी और पराक्रमी बनाता है जबकि कनिष्ठा पर तिल जातक को सम्पत्तिवान तो बनाता है लेकिन जीवन में शांति की कमी रहती है। हथेली के मध्य में तिल धन प्राप्त कराते हैं। बांह में कोहनी के नीचे स्थित तिल शुभ होता है। यह शत्रु नाषक होता है। परंतु कलाई पर स्थित तिल अषुभ होता है। भविष्य में जेल की सजा हो सकती है। हाथ की त्वचा पर स्थित तिल शुभफलदायी होते हैं। हृदय पर स्थित तिल पुत्र प्राप्ति का सूचक होता है। ऐसी स्त्री सौभाग्यवती होती है। वक्षों के आस-पास स्थित तिल भी ऐसा ही फल देता है। पेट और कमर के जोड़ के पास के तिल अषुभ फलदायी होते हैं जबकि सीने पर स्थित तिल वाले जातक की मनोकामनाएं स्वयं पूर्ण हो जाती हंै। यदि तिल दोनों कंधों पर स्थित हैं तो जातक का जीवन संघर्षपूर्ण होता है। दायें कंधे पर तिल जातक की तेज बुद्धि तथा विकसित ज्ञान को इंगित करता है। कांख पर स्थित तिल धनहानि का सूचक है। कमर पर तिल शुभ फलदायी होता है। पेट पर स्थित तिल शुभ नहीं माने जाते। यह व्यक्ति के दुर्भाग्य के सूचक हैं। ऐसे जातक भोजन के शौकीन होते हैं। लेकिन नाभि के आसपास स्थित तिल जातक को धन-समृद्धि दिलाते हैं। यदि तिल नाभि से थोड़ा नीचे है तो जातक को कभी भी धन का अभाव नहीं होता है। पीठ पर तिल जातक को महत्वाकांक्षी, भौतिकवादी प्रवृत्ति देता है। जातक रोमांटिक स्वभाव का तथा भ्रमणषील होता है। ऐसे जातक धन खूब कमाते हैं तथा खर्चा भी खूब करते हैं । घुटनों पर स्थित तिल शत्रुओं के नाष को सूचित करते हैं। पिंडली पर तिल शुभ नहीं माने जाते हैं। टखनों पर भी तिल शुभ फल नहीं देते हैं। कुल्हों के ऊपर स्थित तिल धन का नाष करते हैं। एड़ी में स्थित तिल भी धन तथा मान-सम्मान कम करते हैं। पैरों पर स्थित तिल वाला जातक यात्राओं का शौकीन होता है। लेकिन पैरों की उंगलियों के तिल जातक को बंधनमय जीवन देते हैं। पैर के अंगूठे का तिल व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करवाता है।

Ascendant And Gemstones)

 लग्न और रत्न (Ascendant And Gemstones)

लग्न स्थान को शरीर कहा गया है. कुण्डली में इस स्थान का अत्यधिक महत्व है. इसी भाव से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विचार किया जाता है. लग्न स्थान और लग्नेश की स्थिति के अनुसार जीवन में सुख दु:ख एवं अन्य ग्रहों का प्रभाव भी देखा जाता है. कुण्डली में षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव में लग्नेश का होना अशुभ प्रभाव देता है. इन भावों में लग्नेश की उपस्थिति होने से लग्न कमजोर होता है. लग्नेश के नीच प्रभाव को कम करने के लिए इसका रत्न धारण करना चाहिए.

भाग्य भाव और रत्न (Gemstones and Fortune)
जीवन में भाग्य का बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. भाग्य कमज़ोर होने पर जीवन में कदम कदम पर असफलताओं का मुंह देखना पड़ता है. भाग्य मंदा होने पर कर्म का फल भी संतोष जनक नहीं मिल पाता है. परेशानियां और कठिनाईयां सिर उठाए खड़ी रहती है. मुश्किल समय में अपने भी पराए हो जाते हैं. भाग्य का घर जन्मपत्री में नवम भाव होता है. भाग्य भाव और भाग्येश अशुभ स्थिति में होने पर नवमेश से सम्बन्धित रत्न धारण करना चाहिए. भाग्य को बलवान बनाने हेतु भाग्येश के साथ लग्नेश का रत्न धारण करना अत्यंत लाभप्रद होता है.

तृतीय भाव और रत्न (Gemstone for Third house)

जन्म कुण्डली का तीसरा घर पराक्रम का घर कहा जाता है. जीवन में भाग्य का फल प्राप्त करने के लिए पराक्रम का होना आवश्यक होता है. अगर व्यक्ति में साहस और पराक्रम का अभाव हो तो उत्तम भाग्य होने पर भी व्यक्ति उसका लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाता है. आत्मविश्वास का अभाव और अपने अंदर साहस की कमी महसूस होने पर तृतीयेश से सम्बन्धित ग्रह का रत्न पहना लाभप्रद होता है.

कर्म भाव और रत्न (Gemstone for Tenth House)
कर्म से ही भाग्य चमकता है. कहा भी गया है "जैसी करनी वैसी भरनी" ज्योतिष की दष्टि से कहें तो जैसा कर्म हम करते हैं भाग्य फल भी हमें वैसा ही मिलता है. भाग्य को पब्रल बनाने में कर्म का महत्वपूर्ण स्थान होता है. भाग्य भाव उत्तम हो और कर्म भाव पीड़ित तो इस स्थिति भाग्य फल बाधित होता है. कुण्डली में दशम भाव कर्म भाव होता है. अगर कुण्डली में यह भाव पीड़ित हो अथवा इस भाव का स्वामी कमज़ोर हो तो सम्बन्धित भाव स्वामी एवं लग्नेश का रत्न पहनाना मंगलकारी होता है.

रत्न और सावधानी (Gemstone Precautions)
रत्न धारण करते समय कुछ सावधानियों का ख्याल रखना आवश्यक होता है. जिस ग्रह की दशा अन्तर्दशा के समय अशुभ प्रभाव मिल रहा हो उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न पहनना शुभ फलदायी नहीं होता है. इस स्थिति में इस ग्रह के मित्र ग्रह का रत्न एवं लग्नेश का रत्न धारण करना लाभप्रद होता है. रत्न की शुद्धता की जांच करवाकर ही धारण करना चाहिए धब्बेदार और दरारों वाले रत्न भी शुभफलदायी नहीं होते हैं.

आई ब्रो बताएंगी आपकी पर्सनेलिटी

          आई ब्रो बताएंगी आपकी पर्सनेलिटी


Add caption
क्‍या कहती हैं आपकी आई ब्रो 1. अगर आई ब्रो सीधी हैं तो, व्‍यक्‍ति बहुत ही तार्किक विचारक वाला होता है। अगर आपको इसे कोई बात मनवानी हो तो इसे तर्क और ठोस साक्ष्यों के उपयोग से मनाएं ना कि केवल कह देने भर से ही। 
 
2. 
भौंहें बहुत पतली हो तो इंसान बहुत ही संवेदनशील होता है। ऐसे व्‍यक्‍तियों से बात करते समय हमेशा ध्‍यान रखें कि उनका दिल ना दुखे।
 
 3. 
कुछ युवाओं की आई ब्रो टेढ़ी-मेढ़ी, मोटे गुच्छेदार बालों वाली होती हैं। ये अक्सर रहन-सहन के प्रति लापरवाह एवं रौबदार व्यक्तित्व वाले होते हैं। ये अपनी फीलिंग्स तुरंत रिएक्ट कर देते हैं। इस प्रकार की भौंहें प्रबल दिमागी ताकत वाले युवा की होती हैं। 
 
 4. 
दोनों आई ब्रो मिली हों तो ऐसे व्यक्ति हर समय सोच में डूबे रहते हैं। यह कभी रिलेक्‍स नहीं करते बल्कि अपने आस पास की चीजो़ का हमेशा मूल्यांकन करते रहेंगे। ऐसे व्‍यक्‍तियों को अनिद्रा की भी समस्‍या होती है क्‍योंकि यह हमेशा सोचने में ही अपना समय बरबाद करते हैं। 
 
5.
 दोनों आई ब्रो के बीच यदि ज्यादा जगह हो अथवा अलग-अलग हो तो ऐसे व्यक्ति सच्चरित्र, स्पष्टवादी, नेक दिल के होते हैं। उनका जीवन काँच की तरह ट्रांसपरेंट होता है। 
 
6. 
गोल आई ब्रो हो तो व्‍यक्‍ति बहुत ही दोस्‍ताना किसम का होता है। ऐसे व्‍यक्‍ति मज़ाक करना और समझना दोंनो ही अच्‍छी तरह से जानते हैं। ऐसे व्‍यक्‍ति जिनका चेहरा गोल होता है और गाल तथा ठुड्डी गोलाई में हो वे भी दोस्‍ताना प्रकार के होते हैं। 
 
7. 
मोटी आई ब्रो हों और वे भी एक सीध में तो व्यक्ति बुद्धिमान, अपने कार्य में कुशल एवं हिसाब-किताब में प्रवीण होता है। 
 
 8. 
तलवार की तरह घूमी हुई आई ब्रो वाले व्‍यक्‍ति मधुरता, सरलता, कलाप्रियता की प्रवृत्ति वाले होते हैं। यदि इस प्रकार की आई ब्रो आँखों से दूर हों तो इनमें मानसिक दुर्बलता एवं कमजोरी के गुण विद्यमान होते हैं। 
 
9. 
आई ब्रो के बालों का रंग सिर के बाल के रंग से हल्का हो तो व्यक्ति कमजोर होता है और यदि गहरा रंग हो तो वह प्रबल शक्ति का प्रतीक है। 
 
10.
अगर भौंहों के बाल छोटे हों तो समझना चाहिए कि उस व्यक्ति में दूसरों को देखकर बहुत कुछ सीखने की क्षमता मौजूद है।

भैरव आराधना के खास मंत्र निम्नानुसार है : -


 भैरव आराधना के खास मंत्र निम्नानुसार है : - 
' 




उपरोक्त मंत्र जप आपके समस्त शत्रुओं का नाश करके उन्हें भी आपके मित्र बना देंगे। आपके द्वारा सच्चे मन से की गई भैरव आराधना और मंत्र जप से आप स्वयं को जीवन में संतुष्ट और शांति का अनुभव करेंगे।


   ॐ कालभैरवाय नम:।'
- 2 ॐ भयहरणं च भैरव:।'
- 'ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।'
- 'ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।'
- 'ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्‍।' 


छिन्नमस्ता दशमहाविद्याओं में षष्ठी महाविद्या हैं। इनका दूसरा नाम ‘प्रचण्ड चण्डिका’ भी हैं। हिरण्यकश्यपु और वैरोचन का मनोरथ पूर्ण करने वाली होने से वज्रवैरोचनीया भी कहलाती हैें।
योगियों के लिए इनकी साधना सर्वश्रेष्ठ है। जो साधक कुण्डलिनी जागरण करना चाहते हैं उन्हें यह साधना गुरू मार्गदर्शन में अवश्य करनी चाहिए।



मन्त्र तथा साधनाएं: तान्त्रिक ग्रन्थ

            मन्त्र तथा साधनाएं: तान्त्रिक ग्रन्थ

 

 

मंत्रम ---  ॥ ऊं ह्रीं दुं दुर्गायै नमः ॥

लाभ :--- सर्वविध गृहस्थ सुख प्रदायक साधना है.

विधि :-
  • नवरात्रि में जाप करें.
  • रात्रि काल में जाप होगा.
  • रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
  • लाल रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
  • दिशा पूर्व या उत्तर की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
  • हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
  • सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
  • किसी स्त्री का अपमान न करें.
  • किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
  • किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
  • यथा संभव मौन रखें.
  • साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.
  • बहुत आवश्यक हो तो पत्नी से संपर्क रख सकते हैं.

 

Friday 27 March 2015

प्रेम प्रसंग एवं वैवाहिक जीवन रेखा

              प्रेम प्रसंग एवं वैवाहिक जीवन रेखा






समुद्रशास्त्र में बताया गया है कि हथेली में सबसे छोटी उंगली के नीचे बुध पर्वत का स्थान होता है। बुध पर्वत के अंत में कुछ आड़ी गहरी रेखाएं होती हैं। यह विवाह रेखाएं कहलाती है। व्यक्ति के प्रेम प्रसंग एवं वैवाहिक जीवन का आंकलन इसी रेखा की बनावट के आधार पर किया जाता है। यह रेखा जितनी साफ और स्पष्ट होती है वैवाहिक जीवन उतना ही अच्छा होता है।










हस्त रेखा विज्ञान में बताया गया है कि हाथ में बुध पर्वत पर जितनी आड़ी रेखा होती है व्यक्ति के उतने ही प्रेम प्रसंग हो सकते हैं। धुंधली एवं अस्पष्ट रेखाओं का विचार नहीं किया जाता है। यहां पर जो रेखा सबसे लंबी और साफ होती है उसे ही विवाह रेखा माना जाता है। अन्य रेखाओं को प्रेम प्रसंग के रूप में माना जाता है। विवाह रेखा टूटी हो या कटी हुई हो तो विवाह विच्छेद की संभावना होती है। इस स्थिति में दूसरे विवाह की भी संभावना बन जाती है।






वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा यह भी इस रेखा से जाना जाता है। यदि रेखा नीचे की ओर झुकी हुई हों तो दांम्पत्य जीवन में काफी परेशानी आती है। विवाह रेखा के आरंभ में दो शाखाएं हो तो उस व्यक्ति की शादी टूटने की आशंका रहती है। किसी स्त्री के हाथ में विवाह रेखा के आरंभ में द्वीप चिन्ह हो तो उसका विवाह धोखे से होता है। यदि विवाह रेखा अनामिका के नीचे सूर्य रेखा तक गई हो तो उस व्यक्ति का विवाह किसी विशिष्ट व्यक्ति से होता है।

भाग्य रेखा

                          भाग्य रेखा

 

 

 

भाग्य रेखा के आकार द्वारा किस्मत से सम्बंधित  महत्वपूर्ण निर्णयों का निर्धारण नीचे किया जा रहा है  :-
  • यदि भाग्य रेखा सीधी है और यह रेखा चंद्र पर्वत से मिलती है, तो इससे पता चलता है कि व्यक्ति का कैरियर  अप्रत्याशित रूप से प्रभावित  होगा ।
  • यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत की ओर जाती हो और उसकी शाखाएं किसी दूसरे पर्वत से मिलती हो तो ऐसे व्यक्ति के जीवन  पर उस पर्वत के  गुणो का अधिक प्रभाव रहेगा ।
  • यदि  भाग्य  रेखा  की एक शाखा गुरु पर्वत की  दिशा की ओर जाती है तो किसी  विशेष  चरण मे  ऐसा  व्यक्ति  सामान्य से अधिक  सफलता पाता है ।
  • यदि भाग्य रेखा का उदगम मंगल स्थान के आगे से हो तो व्यक्ति कठिन और मुश्किल समय व्यतीत करेगा ।
  • यदि भाग्य रेखा की एक शाखा चंद्र पर्वत  की ओर दूसरी शाखा शुक्र पर्वत की ओर   जाती है तो ऐसे व्यक्ति का जीवन, कल्पना से जुनून द्वारा प्रभावित रहेगा ।
  • यदि भाग्य रेखा टूटी हुई है तो यह दुर्भाग्य और हानि की निशानी है और यदि इसी के समानांतर दूसरी रेखा आरंभ हो जाए तो व्यक्ति के जीवन मे भारी  परिवर्तन  आता है ।
  • यदि दो  भाग्य रेखा समानान्तर चलती हो तो यह  एक शुभ संकेत है ऐसा व्यक्ति दो अलग अलग क्षेत्र मे महारथ हासिल करेगा ।
  • यदि भाग्य रेखा पर वर्ग की उपस्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति को व्यापार या वित्तीय मामलों में हानि नही होती है ।
  • यदि भाग्य रेखा पर वर्ग के साथ क्रास का चिन्ह हो तो ऐसे व्यक्ति को संकट का सामना करना पड़ेगा तथा साथ ही द्वीप की उपस्थिति ये दर्शाती है कि व्यक्ति को ं दुर्भाग्य हानि और आपदाओं का सामना करना पड़ेगा ।
  • यदि चंद्र पर्वत से कोई शाखा भाग्य रेखा पर जा कर मिलती है तो ये दर्शाती है कि व्यक्ति के वैवाहिक जीवन एवं आम जीवन मे इच्छाओ की प्रबलता रहेगी ।
  • जिस व्यक्ति के हाथ मे भाग्य रेखा अनुपस्थित होती है, ऐसे व्यक्ति जीवन में कितनी भी सफलता प्राप्त करे परन्तु उसका जीवन घास-फूस के समान होता है ।

 

हाथ की मुख्य रेखाएं

                     हाथ की मुख्य रेखाएं


मस्तिष्क रेखा | Mastishk Rekha

मस्तिष्क रेखा का आरंभ तर्जनी उंगली के नीचे से होता हुआ हथेली के दूसरे तरफ जाता है जब तक उसका अंत न हो । ज्यादातर, यह रेखा जीवन रेखा के आरंभिक बिन्दु  को स्पर्श करती है। यह रेखा व्यक्ति के मानसिक स्तर और बुद्धि के विश्लेषण को, सीखने की विशिष्ट विधा, संचार शैली और विभिन्न क्षेत्रों के विषय मे जानने की इच्छा को दर्शाती है।
हृदय रेखा | Hriday  Rekha

हृदय रेखा का उद्गम कनिष्ठा उंगली के नीचे से हथेली को पार करता हुआ तर्जनी उंगली के नीचे समाप्त होता है। यह हथेली के उपरी हिस्से में उंगलियों के ठीक नीचे होती है। यह हृदय के प्राकृतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर को दर्शाती है। यह रोमांस कि भावनाओं, मनोवैज्ञानिक सहनशक्ति, भावनात्मक स्थिरता  और अवसाद की संभावनाओं का विश्लेषण करने के साथ ही साथ हृदय संबंधित विभिन्न पहलुओं की भी व्याख्या करती है।
जीवन रेखा | Jeevan Rekha

जीवन रेखा अंगूठे के आधार से निकलती हुई, हथेली को पार करते हुए वृत्त के आकार मे कलाई के पास समाप्त होती है। यह सबसे विवादास्पद रेखा है। यह रेखा शारीरिक शक्ति और जोश के साथ शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की भी व्याख्या करती है। शारीरिक सुदृढ़ता और महत्वपूर्ण अंगों के साथ समन्वय, रोग प्रतिरोधक क्षमता और स्वास्थ्य का विश्लेषण करती है।
भाग्य रेखा | Bhagya Rekha
भाग्य रेखा कलाई से आरंभ होती हुई चंद्र पर्वत से होते े हुये जीवन रेखा या मस्तिष्क या हृदय रेखा तक जाती है। यह रेखा उन तथ्यों को भी दर्शाती जो व्यक्ति के नियंत्रण के बाहर हैं, जैसे शिक्षा संबंधित निर्णय, कैरियर विकल्प, जीवन साथी का चुनाव और जीवन मे सफलता एवं विफलता  आदि।

सूर्य रेखा | Surya Rekha
सूर्य रेखा को अपोलो रेखा, सफलता की रेखा या बुद्धिमत्ता की रेखा के नाम से भी जाना जाता है। यह रेखा कलाई के पास चंद्र पर्वत से निकलकर अनामिका तक जाती है। यह रेखा व्यक्ति के जीवन मे  प्रसिद्धि, सफलता और प्रतिभा  की  भविष्यवाणी करती है।

स्वास्थ्य रेखा | Swasthya Rekha

स्वास्थ्य रेखा को बुध रेखा के रूप में भी जाना जाता है । यह कनिष्ठा के नीचे बुध पर्वत से आरंभ हो कर कलाई तक जाती है। इस रेखा द्वारा लाइलाज बीमारी को जाना जा सकता है। इसके द्वारा व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य की भी जानकारी मिलती है।

यात्रा रेखाएँ | Yatra Rekha

ये  क्षैतिज रेखाएं कलाई और हृदय रेखा के बीच हथेली के विस्तार पर स्थित है। यह रेखाएं व्यक्ति की यात्रा की अवधि की व्याख्या, यात्रा में बाधाओं और सफलता का सामना तथा यात्रा मे व्यक्ति के स्वास्थ्य की दशा को भी दर्शाती है।

विवाह रेखा | Vivah Rekha

क्षैतिज रेखाएं कनिष्ठा के बिल्कुल नीचे और हृदय रेखा के ऊपर स्थित विवाह रेखाएं कहलाती है। यह रेखाएं रिश्तों में आत्मीयता, वैवाहिक जीवन में खुशी, वैवाहिक दंपती के बीच प्रेम और स्नेह के अस्तित्व को दर्शाता है। विवाह रेखा का विश्लेषण करते समय शुक्र पर्वत और हृदय रेखा को भी ध्यान मे रखना चाहिये।

करधनी रेखाएं | Kardhani Rekha

करधनी रेखा का आरंभ अर्धवृत्त आकार में कनिष्ठा और अनामिका उंगली के मध्य में और अंत  मध्यमा उंगली और तर्जनी  पर होता है। इसे गर्डल रेखा या शुक्र का गर्डल भी कहते हैं। यह व्यक्ति को अति संवेदनशील और उग्र बनाती है। जिन व्यक्तियों मे गर्डल या शुक्र रेखा पाई जाती है वह व्यक्ति की दोहरी मानसिकता को दर्शाता है।
 
सिमीयन रेखा | Simian Rekha

जो रेखा हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा को गठित करती है। सिमीयन रेखा, सिमीयन फोल्ड, सिमीयन क्रीज और ट्रांस्वर्स पाल्मर क्रीज़ के रुप में भी जानी जाती है। यह एक दुर्लभ रेखा है, मस्तिष्क और हृदय के संयोजन का प्रतिनिधित्व करती है। यह सिमीयन रेखा व्यक्ति मे मानसिक धैर्य और संवेदनशीलता  को दर्शाती है।