Friday, 17 April 2015

सौभाग्य भी कई बार वेश बदलकर मिलता हैं

एक गांव में दो व्यक्ति रहते थे। वे सौभाग्य हेतु अपने गुरू के पास गये। गुरू तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे। उन्होंने दोनों को अलग-अलग बुलाकर एक-एक चने का दाना दिया और कहा कि यह तुम्हारी तरक्की लायेगा। पहले व्यक्ति ने उस चने के दाने को एक चॉदी के डिब्बे में रख लिया और उसे हमेशा अपने पास रखता था। दूसरे व्यक्ति ने उस दाने को अपने बगान में गाड़ दिया। तीन दिनों में उस पर अंकुर आ गया। वह उसे पानी देने लगा। फिर चने के पौधे में ढेर सारे चने लगे जिन्हें वह बोता गया और धीरे-धीरे उसके चने की खेती बढ़ने लगी। अब उस व्यक्ति की रूची खेती में बहुत बढ़ गयी। वह ध्यान से फसल पर खाद पानी इत्यादि करने लगा।
5 साल बाद जब गुरू वापस लौटे तो पहला व्यक्ति उनसे मिला और बोला कि गुरू जी मैंने आपके आशीर्वाद को चांदी के डिब्बे में रखा परंतु मुझे अधिक लाभ नहीं मिला। गुरू जब दूसरे व्यक्ति के पास गया तो वह उन्हें एक गोदाम में ले गया जिसमें सैकड़ों चने के बोरे रखे हुए थे। वह उनके चरणों पर लोट गया।
गुरू, ईश्वर तथा कई बार हमारे उच्चाधिकारी हमें लाभ देने के लिए रास्ता तैयार करते हैं पर हम उनके इशारे समझ नहीं पाते और लाभ से वंचित रह जाते हैं । कई बार कोई इशारा भी नहीं होता हैं  पर लाभ तय रहता हैं  । 


 जिंदगी मे बहुत बार परिस्थिति एवं प्रकृति के कारण हमारी 90% मेहनत का अलाभकारी परिणाम दिखने लगता हैं  और हम हारकर उस कार्य को वहीं छोड़ देते हैं । कई बार कार्य पूर्ण करने पर भी हमें कोई लाभ न दिखता हैं , न मिलता हैं  पर वही कार्य की पूर्णता आगे चलकर हमारी तरक्की का मार्ग प्रशस्त करती हैं । 



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