उत्साह का चमत्कार
एक महिला कैंसर से बुरी तरह पीड़ित थी। डॉक्टरों ने उसे बता दिया था कि उसके पास जीवन के सिर्फ 6 महीने ही बचे हैं। इस दौरान उसे महंगा इलाज कराना होगा। महिला के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। जीवन के मात्र छह महीने बाकी देखकर उसने तय किया कि वह एक-एक क्षण का सदुपयोग करेगी। उसने गरीबों और निराश्रितों की सेवा शुरू कर दी। वह सारा दिन गरीब बच्चों के चेहरों पर खुशियां लाने का प्रयास करती। उनके साथ हंसती-खेलती। उत्साह में उसके दिन तेजी से बीत रहे थे।
एक दिन महिला ने कैंसर पीड़ितों की सेवा हेतु देशवासियों से आर्थिक सहायता की अपील की। उसने जन-जन तक कैंसर पीड़ितों की हालत बयां करने के लिए समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविजन आदि का सहारा लिया। लोगों ने तुरंत पैसा देना शुरू भी कर दिया। दो-तीन महीने में ही इतना धन एकत्र हो गया कि उनसे एडंवास तकनीक की तीन-चार मशीनें आ गईं और एक कैंसर अस्पताल का निर्माण भी होने लगा। अपनी सफलता देखकर महिला का उत्साह चरम पर था। उसे दिल से खुशी थी कि उसके प्रयास सफल हो रहे थे।
महिला इन कार्यों में इतनी व्यस्त रही कि उसे इस बात का ध्यान ही न रहा कि वह खुद कैंसर पीड़ित है। एक साल बाद उसे ध्यान आया कि डॉक्टरों ने तो उसके जीवन के छह माह ही बाकी बताए थे। लेकिन अब वह पहले से अधिक स्वस्थ महसूस कर रही थी। जांच में पाया गया कि उसका कैंसर गायब हो चुका था। यह देख डॉक्टर दंग रह गए। महिला मुस्करा कर बोली, 'यह कैंसर उत्साह और सेवा भावना से डर कर भाग गया है।' सभी उसकी बात से सहमत थे।
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