श्राध्दपक्ष में कैसे करें पितृ को प्रसन्न--
श्राध्दपक्ष में कैसे करें पितृ को प्रसन्न---> प्रत्येक मनुष्य की इच्छा रहती है कि वह एवं उसका परिवार सुखी एवं संपन्न रहें! मनुष्य ने अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए देवता के साथ-साथ अपने पितरो का भी पूजन करना चाहिए! कैसे करे पितृ पूजन--------
यहाँ पर पाठको की सुबिधा के लिए संक्षिप्त में सरल हिंदी भाषा में पजन ( तर्पण ) बिधि दे रहें है! ( तर्पण ही पत्र पजन है!)
सर्वप्रथम अपने पास शुध्द जल,बैठने का आसन ( कुशा का हो ),बड़ी थाली या ताम्रण ( ताम्बे कि प्लेट ), कच्चा दूध,गुलाब के फुल ,फुल-माला, कुशा ,सुपारी, जों,काली तिल,जनेऊ इत्यादी पास में रखे!
आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करे ॐ केशवाय नम:,ॐ माधवाय नम:,ॐ गोविन्दाय नम: आचमन के बाद हाथ धोकर अपने उपर जल छिडके अर्थात पवित्र हो,फिर गायत्री मन्त्र से शिखा बाँधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका ऊँगली में पहन कर हाथ में जल ,सुपारी,सिक्का,फूल लेकर निम्न संकल्प ले !
अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करे फिर बोले अध् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्
त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये! !
फिर थाली या ताम्रण में जल,कच्चा दूध,गुलाब की पंखुड़ी डाले,फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आवाहन करे! स्वयं पूर्व मुख करके बैठे,जनेऊ को सव्य रखे! कुशा के अग्र भाग को पूर्व की ओर रखे,देवतीर्थ से अर्थात दाये हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दे, इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दे!
फिर उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके ( माला जैसी ) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिरकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दे,
इसके बाद दक्षिन मुख बैठकर,जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाये, थाली या ताम्रण में काली तिल छोड़े
फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरो का आवाहन करे!
ॐ आगच्छन्तु मे पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम ;
फिर पितृ तीर्थ से अर्थात अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दे !
१. अपने गोत्र का उच्चारण करे एवं पिता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दे !
२. अपने गोत्र का उच्चारण करे , दादाजी (पितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दे !
३. अपने गोत्र का उच्चारण करे पिताजी के दादाजी(प्रपितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दे !
४.अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे ,नाना का नाम लेकर उनको तीन बार तर्पण दे !
५. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नाना के पिताजी(परनाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
६. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नाना के दादा (वृद्ध परनाना ) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
७. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नानी का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
८. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नानाजी की माँ (परनानी ) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
९. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नानाजी की दादी (वृद्ध परनानी ) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
१०.अपने गोत्र का उच्चारण करे अपनी दिवंगत (जो स्वर्गवासी हो ) पत्नी से लेकर परिवार के सभी दिवंगत सदस्य का नाम लेकर तीन-तीन बार -तर्पण दे ! परिवार के साथ -साथ दिवंगत बुआ, मामा, मौसी, मित्र,एवं गुरु को भी तर्पण दे !
विशेष-->जिनके नाम याद नही हो,तो रूद्र,विष्णु,एवं ब्रम्हा जी का नाम उच्चारण कर ले!
इसके बाद भगवान सूर्य को जल चदाये! फिर कंडे पर गुड घी कि धूप दे, धूप के बाद पाँच भोग निकले जो पंचबलीकहलाती है!
१. गाय के लिए सव्य होकर पत्ते प्र्भोग लगाकर गाय को दे,
२. स्वान (कुत्ते) के लिए जनेऊ को कंठी करके पत्ते पर भोग लगाकर कुत्ते को दे,
कौओं के लिए ( ककाब्ली ) असावी होकर पृथ्वी पर भोग ल लगाकर कौओं को दे,
४.( देवादिबली ) देवताओ के लिए सव्य होकर पत्ते पर बोग अतिथि को दे,
५.पिपीलिका के लिए सव्य होकर पत्ते पर भोग लगाकर पिपीलिका को दे,
इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर ये कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दे!
इस कर्म से आपके पत्र बहुत प्रसन्न होंगे एवं आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे!
यहाँ पर पाठको की सुबिधा के लिए संक्षिप्त में सरल हिंदी भाषा में पजन ( तर्पण ) बिधि दे रहें है! ( तर्पण ही पत्र पजन है!)
सर्वप्रथम अपने पास शुध्द जल,बैठने का आसन ( कुशा का हो ),बड़ी थाली या ताम्रण ( ताम्बे कि प्लेट ), कच्चा दूध,गुलाब के फुल ,फुल-माला, कुशा ,सुपारी, जों,काली तिल,जनेऊ इत्यादी पास में रखे!
आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करे ॐ केशवाय नम:,ॐ माधवाय नम:,ॐ गोविन्दाय नम: आचमन के बाद हाथ धोकर अपने उपर जल छिडके अर्थात पवित्र हो,फिर गायत्री मन्त्र से शिखा बाँधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका ऊँगली में पहन कर हाथ में जल ,सुपारी,सिक्का,फूल लेकर निम्न संकल्प ले !
अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करे फिर बोले अध् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्
त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये! !
फिर थाली या ताम्रण में जल,कच्चा दूध,गुलाब की पंखुड़ी डाले,फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आवाहन करे! स्वयं पूर्व मुख करके बैठे,जनेऊ को सव्य रखे! कुशा के अग्र भाग को पूर्व की ओर रखे,देवतीर्थ से अर्थात दाये हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दे, इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दे!
फिर उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके ( माला जैसी ) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिरकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दे,
इसके बाद दक्षिन मुख बैठकर,जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाये, थाली या ताम्रण में काली तिल छोड़े
फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरो का आवाहन करे!
ॐ आगच्छन्तु मे पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम ;
फिर पितृ तीर्थ से अर्थात अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दे !
१. अपने गोत्र का उच्चारण करे एवं पिता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दे !
२. अपने गोत्र का उच्चारण करे , दादाजी (पितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दे !
३. अपने गोत्र का उच्चारण करे पिताजी के दादाजी(प्रपितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दे !
४.अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे ,नाना का नाम लेकर उनको तीन बार तर्पण दे !
५. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नाना के पिताजी(परनाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
६. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नाना के दादा (वृद्ध परनाना ) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
७. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नानी का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
८. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नानाजी की माँ (परनानी ) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
९. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करे नानाजी की दादी (वृद्ध परनानी ) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दे !
१०.अपने गोत्र का उच्चारण करे अपनी दिवंगत (जो स्वर्गवासी हो ) पत्नी से लेकर परिवार के सभी दिवंगत सदस्य का नाम लेकर तीन-तीन बार -तर्पण दे ! परिवार के साथ -साथ दिवंगत बुआ, मामा, मौसी, मित्र,एवं गुरु को भी तर्पण दे !
विशेष-->जिनके नाम याद नही हो,तो रूद्र,विष्णु,एवं ब्रम्हा जी का नाम उच्चारण कर ले!
इसके बाद भगवान सूर्य को जल चदाये! फिर कंडे पर गुड घी कि धूप दे, धूप के बाद पाँच भोग निकले जो पंचबलीकहलाती है!
१. गाय के लिए सव्य होकर पत्ते प्र्भोग लगाकर गाय को दे,
२. स्वान (कुत्ते) के लिए जनेऊ को कंठी करके पत्ते पर भोग लगाकर कुत्ते को दे,
कौओं के लिए ( ककाब्ली ) असावी होकर पृथ्वी पर भोग ल लगाकर कौओं को दे,
४.( देवादिबली ) देवताओ के लिए सव्य होकर पत्ते पर बोग अतिथि को दे,
५.पिपीलिका के लिए सव्य होकर पत्ते पर भोग लगाकर पिपीलिका को दे,
इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर ये कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दे!
इस कर्म से आपके पत्र बहुत प्रसन्न होंगे एवं आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे!
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