ब्रेस्ट कैंसर / स्तन कैंसर के लक्षण और बचाव
हमारे शरीर के सभी अंग सेल्स से बने होते हैं। जैसे-जैसे शरीर को जरूरत होती है, ये सेल्स आपस में बंटते रहते हैं और बढ़ते रहते हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि शरीर को इन सेल्स के बढ़ने की कोई जरूरत नहीं होती, फिर भी इनका बढ़ना जारी रहता है। बिना जरूरत के लगातार होने वाली इस बढ़ोतरी का नतीजा यह होता है कि उस खास अंग में गांठ या ट्यूमर बन जाता है। असामान्य तेजी से बंटकर अपने जैसे बीमार सेल्स का ढेर बना देने वाले एक सेल से ट्यूमर बनने में बरसों, कई बार तो दशकों लग जाते हैं। जब कम-से-कम एक अरब ऐसे सेल्स जमा होते हैं, तभी वह ट्यूमर पहचानने लायक आकार में आता है।शर्म हावी न हो समस्या पर
ब्रेस्ट कैंसर एक गंभीर समस्या है, इसलिए सिर्फ शर्म की वजह से न तो इसको नजरअंदाज करें और न ही इस समस्या के बारे में चुप्पी साधें। इस विषय पर अपने आसपास के लोगों से चर्चा करें और इसके बारे में ज्यादा जानकारी लेने का प्रयास करें। जानकारी से इस रोग से बचाव संभव है। यदि आपको इस संबंध में किसी प्रकार की शंका हो तो डॉक्टर के पास जाकर सलाह अवश्य लें। कहा जाता है कि किसी बीमारी के इलाज से लाख गुना बेहतर होता है कि उससे बचाव की सावधानी बरती जाए। जुकाम से लेकर कैंसर तक इस सूत्र की सत्यता को झुठलाया नहीं जा सकता। बात ब्रेस्ट कैंसर की करें, तो हर युवती को 20 साल की उम्र से ही इस तरफ ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए। वह स्वयं ही अपने ब्रेस्ट की जांच समय-समय पर करे, जैसे उसमें कोई गांठ न हो या ब्रेस्ट अनावश्यक रूप से मोटा न हुआ हो। इस बीमारी से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण है खानपान का ध्यान रखना। अगर अपने खानपान का लगातार ध्यान रखा जाए और कुछ एक्सरसाइज भी की जाए तो इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
ट्यूमर दो तरह के हो सकते हैं - बिनाइन और मैलिग्नेंट।
क्यों होता है कैंसर
वैसे तो ब्रेस्ट कैंसर के 100 में से 10 मामलों में ही अनुवांशिकता काम करती है, लेकिन कैंसर होने में जीन के बदलाव का 100 फीसदी हाथ होता है। जींस, एनवायरनमेंट और लाइफस्टाइल- ये तीन कारक मिलकर किसी के शरीर में कैंसर होने की आशंका को बढ़ाते हैं।
20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड शुरू होने के 5-7 दिन बाद किसी दिन (मीनोपॉज में पहुंच चुकी महिलाएं कोई एक तारीख तय कर लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आईने में देखिए। नीचे ब्रा लाइन से लेकर ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन उंगलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित स्पीड और दिशाओं में हो (यह जांच अपने कमरे में लेटकर या बाथरूम में शॉवर में भी कर सकती हैं)।
देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं :
ब्रेस्ट या निपल के साइज में कोई असामान्य बदलाव
कहीं कोई गांठ (चाहे मूंग की दाल के बराबर ही क्यों न हो) जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो, ब्रेस्ट कैंसर में शुरुआत में आम तौर पर गांठ में दर्द नहीं होता
कहीं भी स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह छोटे-छोटे छेद या दाने बनना
एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ दिखना
निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड निकलना ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द
(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें से एक या ज्यादा लक्षण होने पर कैंसर हो ही। वैसे भी युवा महिलाओं में 90 पर्सेंट गांठें कैंसर-रहित होती हैं। लेकिन 10 पर्सेंट गांठें चूंकि कैंसर वाली हो सकती हैं, इसलिए डॉक्टर से जरूर जांच कराएं।)
गलतफहमियां न पालें
कैंसर छूत की बीमारी नहीं है जो मरीज को छूने, उसके पास जाने या उसका सामान इस्तेमाल करने से हो सकती है।
कैंसर के मरीज का खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से कैंसर नहीं होता।
कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटी-बायोटिक्स से हो सके।
चोट या धक्का लगने से ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता।
20 साल की उम्र से किसी भी उम्र की महिला को ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर पुरुषों को भी होता है। 100 में से एक ब्रेस्ट कैंसर का मरीज पुरुष हो सकता है।
खान-पान और लाइफस्टाइल में सुधार कर कैंसर होने की आशंका को कम किया जा सकता है। लेकिन एक बार कैंसर हो जाने के बाद उसे बिना दवा या सर्जरी के ठीक नहीं किया जा सकता। इसका प्रामाणिक इलाज अलोपथी ही है।
ज्यादातर (100 में से 90) मामलों में ब्रेस्ट कैंसर खानदानी बीमारी नहीं है। कई वजहें मिलकर कैंसर बनाती हैं।
ब्रेस्ट की 90 फीसदी गांठें कैंसर-रहित होती हैं। फिर भी हर गांठ की फौरन जांच करानी चाहिए।
ज्यादातर मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द बिल्कुल नहीं होता।
कैंसर का इलाज मुमकिन है और इसके बाद भी सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।
जागरूकता जरूरी
पहले ब्रेस्ट कैंसर विकसित देशों की, खाते-पीते परिवारों की महिलाओं की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब यह हर वर्ग की महिलाओं में देखा जा रहा है। खास यह है कि ब्रेस्ट कैंसर के 50 फीसदी मरीजों को इलाज करवाने का मौका ही नहीं मिल पाता। कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है - जल्द पहचान। जितनी शुरुआती अवस्था में कैंसर की पहचान होगी, इलाज उतना ही सरल, सस्ता, छोटा और सफल होगा। इसकी पहचान के बारे में अगर लोग जागरूक हों, अपनी जांच नियमित समय पर खुद करें तो मशीनी जांचों से पहले ही बीमारी के होने का अंदाजा हो सकता है।
No comments:
Post a Comment